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गयी और वे आह्लादित हृदय से प्रासाद की ओर लौट गए
तप्त दूध में एक उफान, हुआ सचिव वच जल-कण पान | बाहुबली अंतर - आह्लाद, पहुँच गया अपने प्रासाद ।।
ऋ. पृ. 140
भरत में आह्लाद भाव को 'बादल' के बिम्ब से व्यक्त किया गया | पुत्र के प्रति चिंतित मां मरूदेवा के आशीष से भरत के हृदय रूपी आकाश में हर्ष के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं
पा आशीष महामाता से, आया नृप अपने प्रासाद ।
उमड़ रहा है चिदाकाश में, महा मुदिर बनकर आह्लाद ।। ऋ. पू. 149
पनिहारिन द्वारा अयोध्या में ऋषभ की उपस्थिति एवं उनके आभामंडल के चित्रण से मरूदेवा के कमलवत् नेत्र विकसित हो चले, जिससे उनका सम्पूर्ण गात्र हर्ष से प्रफुल्लित हो उठा -
हर्षोत्फुल वदन माता का, नयन- कमल में नव उन्मेष । बदल गयी चिंता चिंतन में, विदा हो गया सारा क्लेश ।।
ऋ. पृ. 152 चक्रवर्ती पद पर भरत के अभिषेक की घोषणा से जनमानस की प्रसन्नता की अभिव्यक्ति भी 'बादल' के बिम्ब से की गयी है। जिस प्रकार बादलों की वर्षा से उद्यान हरे भरे हो जाते हैं, सरोवर जल से परिपूर्ण एवं लताएं निर्मल हो जाती हैं, उसी प्रकार 'जन-जन का हृदय रूपी सरोवर हर्ष रूपी बादल की वर्षा से परिपूर्ण हो चला जिससे उनके जीवन रूपी उद्यान में हरियाली छा गयी
मोद मुदिर बन लगा बरसने हरित हुआ जीवन
उद्यान ।
छलक उठे जन-मानस - सरवर, वनराजी अतिशय अम्लान ।। ऋ.पू. 189
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विकसित कमल के बिम्ब से श्री सम्पन्न भरत की सभा में उपस्थिति जन मन के प्रमोद भाव को व्यक्त किया गया है। भरत के चक्रवर्ती पद के अभिषेक के समय सभी के नेत्र कमल के समान खिल उठे, मन में हर्ष भाव की व्याप्ति से किसी में भी दूर-दूर तक ईर्ष्या का जन्म नहीं हो सका -