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________________ अध्याय-चतुर्थ ऋषभायण में भाव बिम्ब भाव का स्वरूप - भाव और विचार कविता का प्राण तत्व है। जिस प्रकार भाव या विचार विहीन कविता की कल्पना नहीं की जा सकती। उसी प्रकार भाव या विचार के अभाव में बिम्ब की कल्पना भी निरर्थक हो जाती है। भाव, चित्त की विशिष्ट दशा का नाम है जो स्वयं में अमूर्त होती है किन्तु उसका कारण मूर्त होता है। काव्य में अमूर्त भाव को जब तक मूर्ति नहीं किया जायेगा, तब तक उसका स्वरूप स्पष्ट नहीं होगा। बिम्ब के द्वारा भावों का मूर्त्तन होता है, जिस कारण वह सहज में ही पाठक अथवा श्रोता के लिए ग्राह्य बनता है। उदाहरण के तौर पर भय, भाव की अनुभूति की एक विशिष्ट दशा है। मात्र शब्दिक प्रयोग से इसके प्रभाव को निरूपित नहीं किया जा सकता। इसके लिए कवि गण, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों की योजना कर भाव का मूर्त्तन करते हैं। कवि द्वारा अनुभाव, विभाव अथवा संचारी भाव चित्र रूप में व्यंजित किए जाने पर ही प्रभावशाली बनते हैं। जैसे-कोई व्यक्ति जंगल में शेर को देखकर एवं उसकी दहाड़ को सुनकर भय से कांपने लगता है। यहाँ भय का संचार शेर को देखकर हआ जो स्वयं में आलंबन है और 'कम्प' भय का कार्य अथवा परिणाम है। इस प्रकार सहृदय में भाव स्थायी रूप में रहते ही हैं। जब उसका कारण (विभाव) उपस्थित होता है, तब वे मूर्तित हो जाते हैं। वस्तुतः भावों के मूर्तन की प्रक्रिया का नाम ही बिम्ब है। ऋषभायण में न्यूनाधिक रूप से हास्य रस को छोड़कर सभी रसों के स्थायी भाव तथा कतिपय संचारी भावों से संबंधित बिम्ब नियोजित हुए हैं। इस प्रकार स्थायी भावों के आधार पर ऋषभायण के बिम्बों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - - 1. भक्ति 2. निर्वेद 3. वात्सल्य 4. शोक 5. विस्मय 6. उत्साह 7. क्रोध 8. भय 9. जुगुप्सा 10. रति। 12351
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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