________________
पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की वस्तुव्यवस्था दर्शाती गाथाएँ
35
को नित्य मानने में आवे तथा गुण भी नित्य मानने में आवे और पर्यायें कल्लोलादि की भाँति उत्पन्न
और नाश होनेवाली मानने में आवे, यदि ऐसा कहो तो' - अर्थात् पदार्थ को समुद्र और तरंग के उदाहरण से ऐसा मानने में आवे कि-द्रव्य समुद्र का दल एकान्त से नित्य और पर्याय तरंग एकान्त से अनित्य मानने में आवे तो क्या हानि है? उसका समाधान -
गाथा २१२ - अन्वयार्थ – ‘ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि समुद्र और लहरें (तरंगें) का दृष्टान्त शंकाकार के प्रकृत-उपरोक्त अर्थ का ही बाधक है (खण्डन करता है) तथा शंकाकार द्वारा नहीं कहे गये प्रकृत अर्थ के विषयभूत इस वक्ष्यमान (कथन करने से) कथंचित् नित्यअनित्यात्मक अभेद अर्थ का साधक है।'
__यहाँ याद रखना कि अभेद का साधक कहा है अर्थात् द्रव्य अभेद है उसमें भेद उत्पन्न करके कहा जाता है, भिन्न प्रदेशरूप वास्तविक नहीं और दूसरा, प्रस्तुत उदाहरण से ही अभेदद्रव्य सिद्ध होता है। क्योंकि जो तरंग कल्लोल है, वह समुद्र की ही बनी है अर्थात् वह समुद्र ही उसरूप परिणमित हुआ है अर्थात् वह समुद्र ही है ऐसा अभेदस्वरूप है द्रव्य का।
भावार्थ - 'शंकाकार के कथनानुसार गुणों को और वस्तु को (द्रव्य को) सर्वथा नित्य तथा उत्पाद-व्यय को सर्वथा अनित्य मानना ठीक नहीं है, क्योंकि इस सिद्धान्त को सिद्ध करने के लिये जो समुद्र और कल्लोलों का दृष्टान्त दिया, वह शंकाकार के उपरोक्त पक्ष का साधक न होकर बिना कहे ही उपरोक्त पक्ष के (शंकाकार के पक्ष के) विपक्ष का अर्थात्-जैन सिद्धान्तानुसार माने हुए कथंचित् अभेदात्मक पक्ष का साधक है, आगे इसी अर्थ का स्पष्टीकरण करते हैं-'
अथवा कोई द्रव्य को चक्की की तरह समझता हो, जैसे कि चक्की में नीचे का भाग स्थिर और ऊपर का भाग घुमता है तो द्रव्य में जैन सिद्धान्तानुसार ऐसी व्यवस्था भी नहीं है, यह भी इस गाथा से सिद्ध होता है।
गाथा २१३ -अन्वयार्थ – 'तरंग मालाओं से व्याप्त समुद्र की भाँति निश्चय से किसी भी गुण के परिणामों से अर्थात् पर्यायों से सत् की अभिन्नता होने से उस सत् का अपने परिणामों से कुछ भी भेद नहीं है।'
अर्थात् जो पर्याय है वह द्रव्य का वर्तमान ही होने से द्रव्य की ही बनी हुई होने से (तरंग में समुद्र ही होने से) वास्तव में कोई भेद नहीं है परन्तु भेदनय से भेद कहने में आता है, इसलिए उसे कथंचित् भेदाभेद भी कहा जाता है।
भावार्थ - ‘क्योंकि जिस प्रकार तरंगों के समूह को छोड़ने पर समुद्र कुछ भिन्न वस्तु सिद्ध