________________
द्रव्य-गुण व्यवस्था
ठीक है क्योंकि हिलाया गया एक बाँस अपने सभी पर्यों में-एक-एक गाँठ में हिल जाता है।' इस प्रकार द्रव्य अखण्ड है और सर्व प्रदेशों में रहे हुए सर्व गुण सर्व प्रदेश में परिणमते हैं।
गाथा ३९ :- अन्वयार्थ :- ‘इन गुणों का आत्मा ही द्रव्य है क्योंकि ये गुण देश से (द्रव्य से) भिन्न सत्तावाले नहीं हैं। निश्चय से देश में (द्रव्य में) विशेष (गुण) नहीं रहते परन्तु वे विशेष (गुण) द्वारा ही देश (द्रव्य) वैसा गुणमय ज्ञात होता है।' अर्थात् गुण है, वही द्रव्य है, दूसरा कोई द्रव्य नहीं है।
गाथा ४५ :- अन्वयार्थ :- ‘इसलिए यही निर्दोष है कि इस निर्विशेष-निर्गुण द्रव्य के विशेष ही गुण कहलाते हैं और वे प्रतिक्षण कथंचित् परिणमनशील हैं।'
अर्थात् द्रव्य में गुणों के अतिरिक्त कुछ ही नहीं और वे सर्व गुण शाश्वत (टिकते) और परिणमते हैं अर्थात् जो टिकते हैं वे ही टिककर परिणमते भी हैं, वे कूटस्थ नहीं हैं। कथंचित् का अर्थ यह है कि जो टिकता है वही परिणमता है मात्र अपेक्षा से टिकता और परिणमता कहने में आता है। अर्थात् जो टिकता है उसका वर्तमान-वही उसका परिणमन और उसमें कोई वास्तविक भेद न होने से उसे कथंचित् कहा है।
गाथा १०५ :- अन्वयार्थ :- ‘प्रगट है अर्थ जिसका ऐसे गुणों के लक्षण सम्बन्धी पदों का सारांश यह है कि समान हैं प्रदेश जिसके ऐसे एक साथ रहनेवाले जो विशेष हैं, वे ही (विशेष) ज्ञान द्वारा भिन्न करने पर क्रम से श्रेणीकृत गुण जानना।'
भावार्थ - ‘अनन्त गुणों के समुदाय का नाम द्रव्य है। द्रव्य के सम्पूर्ण प्रदेशों में जैसे एक विवक्षित गुण रहता है, उसी तरह द्रव्य के सब गुण भी उस द्रव्य के उन्हीं सब प्रदेशों में युगपत (एक साथ) रहते हैं। इसलिए द्रव्य के सभी गुण समान प्रदेशवाले अर्थात् अभिन्न हैं। वस्तुत: इनमें कोई भेद नहीं तथापि श्रुत ज्ञानान्तर्गत नयज्ञान से विभक्त (भिन्न-भिन्न) करने पर उनकी भिन्नभिन्न श्रेणियाँ हो जाती हैं क्योंकि वस्तु में खण्ड कल्पना नयज्ञान के कारण से ही होती है।' अर्थात् वस्तु अभेद ही है, इसलिए किसी भी भेद की कल्पना वह नयज्ञान ही है।
गाथा ४९१ :- अन्वयार्थ :- ....इन सब गुणों की एक ही सत्ता होने से इन सब गुणों में अखण्डितपना प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है।'
गाथा ४९२ :- अन्वयार्थ :- “इसलिए ये कथन निर्दोष है कि - यद्यपि भाव की अपेक्षा से सत् अखण्डित एक है, तथापि वह सर्व कथन विवक्षावश से है। ‘सर्वथा' उसी नय से नहीं।"