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________________ दृष्टि का विषय ही हों! वे एक अभेदद्रव्य में उपजा (कल्पना) करके बतलाये हुए गुण-पर्याय को भी भिन्न समझते हैं अर्थात् द्रव्य का सम्यक् स्वरूप समझाने को द्रव्य को अपेक्षा से गुण और पर्याय से भिन्न बतलाया है, उसे वे वास्तविक भिन्न समझते हैं; द्रव्य और पर्याय को दो भाव न मानकर वे उसे दो भागरूप मानने तक की प्ररूपणा करते हैं और आगे उसमें भी सामान्य-विशेष ऐसे दो भाग की कल्पना करते हैं। इस प्रकार वस्तु व्यवस्था की ही विकृत रीति से प्ररूपणा करके वे भी संसार का अन्त करनेवाले धर्म से तो दर ही रहते हैं और तदपरान्त ऐसे लोगों को भी प्रायः स्वच्छन्दता के कारण पुण्य का अभाव होने के कारण भव का ठिकाना नहीं रहता, जो बात भी अत्यन्त करुणा उत्पन्न करे, वैसी ही है। अभी जैन समाज में प्रवर्तमान तत्त्व की ऐसी गैर समझ को दूर करने के लिए हम हमारे आत्मा की अनुभूतिपूर्वक के विचार, शास्त्र के आधार सहित इस पुस्तक में प्रस्तुत करते हैं, जिसका विचार-चिन्तन-मनन आप खुले मन से और अच्छा वही मेरा' और 'सच्चा वही मेरा' ऐसा अभिगम अपनाकर करोगे तो अवश्य आप भी तत्त्व की प्रतीति निःसन्देह कर सकोगे। ऐसा हमें विश्वास है। यहाँ हमारे लिये जो हमने हम' सम्बोधन प्रयोग किया है, वह कोई मान वाचक शब्द नहीं समझना परन्तु उसका अर्थ त्रिकालवर्ती आत्मानुभवी है क्योंकि त्रिकालवर्ती आत्मानुभवियों की स्वात्मानुभूति एक समान ही होती है। यह पुस्तक तैयार करने में हमने जिन-जिन ग्रन्थों का आधार लिया है, उसके लिये हम उनके लेखकों ऐसे आचार्य भगवन्तों के, उन ग्रन्थों की टीका रचनेवालों के, अनुवादकों के तथा प्रकाशकों के हृदयपूर्वक आभारी हैं। प्रत्येक ग्रन्थों की गाथा का अन्वयार्थ और भावार्थ' में दिया है। हमें यह पुस्तक तैयार करने में अनेक लोगों ने अलग-अलग रीति से सहयोग दिया है, उन सबके हम ऋणी हैं; इसलिए उन सबका हम हृदयपूर्वक आभार मानते हैं और विशेष पण्डित श्री देवेन्द्रकुमार जैन (बिजौलिया) का प्रस्तावना लिखने के लिये हृदयपूर्वक आभार मानते है। हमारे आत्मा की अनुभूतिपूर्वक के विचारों को आप परीक्षा करके और यहाँ प्रस्तुत शास्त्र के आधार से स्वीकार करके सम्यग्दर्शन प्रगट करो, जिससे आप भी धर्मरूप परिणमो और मोक्षमार्ग पर अग्रसर बनकर अन्त में सिद्धत्व को प्राप्त करो - इसी अभ्यर्थनासह। प्रस्तुत पुस्तक में जाने-अनजाने मुझसे कुछ भी जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो तो त्रिविध त्रिविध मेरे मिच्छामि दुक्कडम! सी. ए. जयेश मोहनलाल शेठ १६-०१-२०१४
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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