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समाधिमरण चिन्तन
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समाधिमरण चिन्तन सर्व प्रथम यह समझना आवश्यक है कि मरण अर्थात् क्या? और वास्तव में मरण किसका होता है?
उत्तर : आत्मा तो अमर होने से कभी मरण को पाता ही नहीं परन्तु वास्तव में आत्मा का पुद्गलरूप शरीर के साथ एकक्षेत्रावगाह सम्बन्ध का अन्त आता है, उसे ही मरण कहा जाता है। इसलिए मरण अर्थात् आत्मा का एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में जाना।
___ संसार में कोई एक घर छोड़कर, दूसरे अच्छे घर में रहने जाता है तब, अथवा कोई पुराने कपड़े बदलकर नये कपड़े पहनता है तब, शोक करते ज्ञात नहीं होता। ट्रेन में सब अपने-अपने स्टेशन आने पर उतर जाते हैं परन्तु कोई उसका शोक करते ज्ञात नहीं होता; तो मरण के प्रसंग में शोक क्यों होता है? इसका सबसे बड़ा कारण है मोह, अर्थात् उन्हें अपना माना था, इसलिए शोक होता है। सब कोई जानते हैं कि एक दिन सबको इस दुनिया में से जाना है, तथापि अपने विषय में कभी कोई विचार नहीं करते और उसके लिये अर्थात् समाधिमरण की तैयारी भी नहीं करते। इसीलिए सर्व को अपने समाधिमरण के विषय में विचार कर, उसके लिये तैयारी करनायोग्य है।
इसलिए प्रश्न होता है कि समाधिमरण अर्थात् क्या और उसकी तैयारी कैसी होती है? समाधिमरण अर्थात् एकमात्र आत्मभाव से (आत्मा में समाधिभाव से) वर्तमान देह को छोड़ना। अर्थात् मैं आत्मा हूँ-ऐसे अनुभव के साथ का, अर्थात् सम्यग्दर्शनसहित के मरण को समाधिमरण कहा जाता है। इसलिए समाधिमरण का महत्त्व इस कारण है कि वह जीव, सम्यग्दर्शन साथ लेकर जाता है अन्यथा, अर्थात् समाधिमरण न होकर, वह जीव सम्यग्दर्शन को वमन कर जाता है। लोग समाधिमरण की तैयारी के लिये संथारा की भावना भाते हुए ज्ञात होते हैं। अन्त समय की आलोचना करते हुए / कराते हुए ज्ञात होते हैं, निर्यापकाचार्य (संथारे का निर्वाह करानेवाले आचार्य की) शोध करते ज्ञात होते हैं परन्तु सम्यग्दर्शन, जो कि समाधिमरण का प्राण है, उसके विषय में लोग अनजान ही हों-ऐसा ज्ञात होता है। इसलिए समाधिमरण की तैयारी के लिये यह पूर्ण जीवन एकमात्र सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के उपाय में ही लगानायोग्य है, क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना अनन्त बार दूसरा सब ही करने पर भी आत्मा का उद्धार शक्य नहीं हुआ, भवभ्रमण का अन्त नहीं आया। अर्थात् सम्यग्दर्शन के बिना चाहे जो उपाय करने से, कदाचित् एक-दो, थोड़े