________________
दृष्टि का विषय
आदर छूटना आवश्यक है। इस कारण से सर्व पुरुषार्थ उनके प्रति वैराग्य हो, इसके लिए ही लगाना आवश्यक है कि जिसके लिए सवाँचन और सच्ची समझ आवश्यक है। • तुमको क्या रुचता है ? यह है आत्मप्राप्ति का बैरोमीटर - थर्मामीटर। इस प्रश्न का उत्तर चिन्तवन करना। जब तक उत्तर में कोई भी सांसारिक इच्छा / आकांक्षा हो, तब तक अपनी गति संसार की ओर समझना और जब उत्तर एकमात्र आत्मप्राप्ति, ऐसा हो तो समझना कि आपके संसार का किनारा बहुत नजदीक आ गया है। इसलिए उसके लिए पुरुषार्थ बढ़ाना।
176
• तुम्हें क्या रुचता है ? यह है तुम्हारी भक्ति का बैरोमीटर - थर्मामीटर अर्थात् भक्तिमार्ग की व्याख्या यह है कि जो आपको रुचता है, उस ओर आपकी सहज भक्ति समझना । भक्तिमार्ग अर्थात् चापलूसी अथवा व्यक्तिगतरूप भक्ति नहीं समझना परन्तु जो आपको रुचता है अर्थात् जिसमें आपकी रुचि है, उस ओर ही आपकी पूर्ण शक्ति कार्य करती है। इसलिए जिसे आत्मा की रुचि जगी है और मात्र उसका ही विचार आता है, उसकी प्राप्ति के ही उपाय विचारता है तो समझना कि मेरी भक्ति यथार्थ है । अर्थात् मैं सच्चे भक्तिमार्ग में हूँ; इसलिए जब तक तुम्हें क्या रुचता है, इसके उत्तर में कोई भी सांसारिक इच्छा / आकांक्षा हो अथवा कोई व्यक्ति हो, तब तक अपनी भक्ति संसार की ओर की समझना और जब उत्तर एकमात्र आत्मप्राप्ति, ऐसा होवे तो समझना कि आपके संसार का किनारा बहुत नजदीक आ गया है। इसलिए भक्ति अर्थात् संवेग समझना कि जो वैराग्य अर्थात् निर्वेदसहित ही आत्मप्राप्ति के लिए कार्यकारी है।
अभयदान, ज्ञानदान, अन्नदान, धनदान, औषधदान में अभयदान अतिश्रेष्ठ है। इसलिए सबको प्रतिदिन जीवन में जतना (प्रत्येक काम में कम से कम जीव हिंसा हो वैसी सावधानी) रखना अत्यन्त आवश्यक है।
धन पुण्य से प्राप्त होता है या मेहनत से अर्थात् पुरुषार्थ से ? उत्तर- धन की प्राप्ति में पुण्य का योगदान अधिक है और मेहनत अर्थात् पुरुषार्थ का योगदान न्यून है । क्योंकि जिसका जन्म पैसापात्र कुटुम्ब में होता है, उसे कुछ भी प्रयत्न बिना ही धन प्राप्त होता है और व्यापार में बहुत मेहनत करने पर भी धन गँवाते दिखायी देते हैं। धन कमाने के लिए प्रयत्न आवश्यक है परन्तु कितना ? कारण कि बहुत लोगों को बहुत अल्प प्रयत्न में अधिक धन प्राप्त होता दिखता है, जबकि किसी को बहुत प्रयत्न करने पर भी कम धन