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दृष्टि का विषय
वे मतभेद को मतभेद से अधिक, कोई राग-द्वेष के कारणरूप वैर, विरोध और झगड़े का रूप देना वह, उसी धर्म के लिये मृत्यु घंट समान है।
__इसलिए हम तो सबको एक ही बात बतलाते हैं कि धर्म के नाम से ऐसे वैर, विरोध और झगड़े हो तो उन्हें समाप्त कर देना और सर्व जनों को अपने मन में से भी निकाल देना, अन्यथा वे वैर, विरोध और झगड़े आपको मोक्ष तो दूर, अनन्त संसार का कारण बनेंगे। इसलिए जिसे जो वैर-विरोध हो, उसे क्षमा कर देना ही हितप्रद है और भूल जाना ही हितप्रद है और उसी में ही जिनधर्म का हित समाहित है क्योंकि ऐसा वैर-विरोध और झगड़ा भी धर्म को विपरीतरूप से ग्रहण किया है, उसका ही फल है, अन्यथा जिसने धर्म सम्यक्प से ग्रहण किया हो, उसके मन में वैर-विरोध उठे कैसे? अर्थात् मात्र करुणा ही जन्मे, नहीं कि वैर-विरोध अथवा झगड़ा, यह समझने की बात है और इसीलिए सर्वजनों को धर्म निमित्त के वैर, विरोध अथवा झगड़ा भूलकर सत्य धर्म का फैलाव करनेयोग्य है, ऐसा हमारा मानना है।