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________________ 92 दृष्टि का विषय दिखाया है)-ऐसा जो यह उद्धत मोह की लक्ष्मी को (रिद्धि को, शोभा को) लूट लेनेवाला शुद्धनय (अर्थात् शुद्धोपयोग, अर्थात् सम्यग्दर्शन=स्वात्मानुभूति) उसने उत्कट विवेक द्वारा तत्व को (आत्मस्वरूप) को विविक्त (प्रगट) किया है।' अर्थात् सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है। गाथा २४० टीका-'जो पुरुष अनेकान्त केतन (अनेकान्तयुक्त) आगम ज्ञान के बल से, सकल पदार्थों के ज्ञेयाकारों के साथ मिश्रित होता हुआ विशद एक ज्ञान (ज्ञेयाकार अर्थात् ज्ञानाकार जो कि ज्ञान के ही बने हुए होने से उन आकारों को गौण करते ही ज्ञान सामान्यमात्र ‘शुद्धात्मा' जो कि सम्यग्दर्शन का विषय है, वही प्राप्त होता है।) जिसका आकार है, ऐसे आत्मा को ('शुद्धात्मा' को) श्रद्धान और अनुभव करता हुआ (अर्थात् श्रद्धा और अनुभव का विषय एक ही है), आत्मा में ही नित्य निश्चल वृत्ति को इच्छता हुआ....' यहाँ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की विधि बतलायी है।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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