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करने से अनंत दुःख देनेवाले अनंत कर्मों का बंध होता है और जीव वर्तमान में भी दुःखी होता है। जागृति हर समय रखना अथवा हर घंटे अपने मन के परिणाम की जाँच करते रहना, उनका झुकाव किस
ओर है, वह देखना और उसमें आवश्यक सुधार करना। लक्ष्य एकमात्र आत्मप्राप्ति का ही रखना और वह भाव दृढ़ करते रहना। अनंत काल तक रहने के दो ही स्थान हैं। एक सिद्ध अवस्था और दूसरा निगोद। पहले में अनंत सुख है और दसरे में अनंत दःख है। इसलिए अपने भविष्य को लक्ष्य में लेते हुए सर्वजनों को अपने सर्व प्रयत्न अर्थात् पुरुषार्थ एकमात्र मोक्ष के लिए ही करना योग्य है। जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है ऐसा मानना। जिससे आर्तध्यान और रौद्रध्यान से बचा जा सकता
है। अर्थात् नये कर्मों के आस्रव से बचा जा सकता है। • मुझे किसका पक्ष किसकी तरफदारी करते रहना?
अर्थात् मुझे कौन से संप्रदाय अथवा किस व्यक्ति विशेष का पक्ष करते रहना? उत्तर- मात्र अपना ही अर्थात् अपने आत्मा का ही पक्ष करते रहना, क्योंकि
५० * सुखी होने की चाबी