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अनंत दुःखों का अंत नहीं आता, अर्थात् नरक-निगोद का नदावा (ACQUITTANCE= अब पश्चात् वह जीव कभी नरक/ निगोद में जानेवाला नहीं) होता नहीं इसलिए ऐसे दर्लभ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए और तैयारीरूप इस संसार के प्रति वैराग्य, संसार के सुखों के प्रति उदासीनता और शास्त्र स्वाध्याय से यथार्थ तत्त्व का निर्णय आवश्यक है।
यह मनुष्यभव अत्यंत दुर्लभ है, इसलिए इसका उपयोग किसमें करना यह विचारना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि जैसा जीवन जिया हो, प्राय: वैसा ही मरण होता है; इसलिए नित्य जागृति जरूरी है। जीवन में नीति-न्याय आवश्यक है, नित्य स्वाध्याय, मनन, चिंतन आवश्यक है, क्योंकि आयुष्य का बंध कभी भी पड़ सकता है और गति अनुसार ही मरण के समय लेश्या होती है। इसलिए जो समाधिमरण चाहते हों, उन्हें पूर्ण जीवन सम्यग्दर्शन सहित धर्ममय जीना आवश्यक है। इसलिए जीवनभर सर्व प्रयत्न सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए ही करना योग्य है, क्योंकि सम्यग्दर्शन के लिए किए गए सर्व शुभभाव यथार्थ हैं, अन्यथा वे भवकटी के लिए अयथार्थ सिद्ध होते हैं और उस सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बाद भी प्रमाद सेवन करना योग्य नहीं है, क्योंकि एक समय का भी प्रमाद नहीं करने की भगवान की आज्ञा है। सबको मात्र अपने ही परिणाम पर दृष्टि रखनी योग्य है
३२ * सुखी होने की चाबी