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________________ इसलिए प्रश्न होता है कि समाधिमरण मतलब क्या और उसकी तैयारी कैसी होती है? समाधिमरण अर्थात् एकमात्र आत्मभाव से (आत्मा में समाधिभाव से) वर्तमान देह को छोड़ना। अर्थात् मैं आत्मा हूँ ऐसे अनुभव के साथ का, अर्थात् सम्यग्दर्शन सहित के मरण को समाधिमरण कहा जाता है; अर्थात् समाधिमरण का महत्त्व इस कारण है कि वह जीव, सम्यग्दर्शन साथ लेकर जाता है अन्यथा, अर्थात् समाधिमरण न होकर, वह जीव सम्यग्दर्शन को वमन कर जाता है। लोग समाधिमरण की तैयारी के लिए संथारा की भावना भाते हुए ज्ञात होते हैं। अंत समय की आलोचना करते हुए/कराते हुए ज्ञात होते हैं, निर्यापकाचार्य (संथारे का निर्वाह करानेवाले आचार्य) की शोध करते ज्ञात होते हैं परंतु सम्यग्दर्शन, जो कि समाधिमरण का प्राण है, उसके विषय में लोग अनजान ही हों - ऐसा ज्ञात होता है। इसलिए समाधिमरण की तैयारी के लिए यह पूर्ण जीवन एकमात्र सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के उपाय में ही लगाना योग्य है, क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना अनंत बार दूसरा सब कुछ करने पर भी आत्मा का उद्धार शक्य नहीं हुआ, भवभ्रमण का अंत नहीं आया। अर्थात् सम्यग्दर्शन के बिना चाहे जो उपाय करने से, कदाचित् एक-दो, थोड़े से भव अच्छे मिल भी जायें, तथापि भवकटी नहीं होती और इस कारण समाधिमरण चिंतन * ३१
SR No.009385
Book TitleSukhi Hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherJayesh Mohanlal Sheth
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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