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कल्पवल्ली में गूंफित कार
इस मन्दिर को “चतुर्मुख प्रासाद" के अलावा "धरणविहार", " त्रैलोक्य दीपक प्रासाद" एवं "त्रिभुवन-विहार" के नाम से भी पहचाना जाता है। इसके निर्माता श्रेष्ठी धरणाशाह होने से इसका "धरणविहार", तीन लोक में यह दीपक समान होने से " त्रैलोक्य- दीपक-प्रासाद" तथा “त्रिभुवनविहार” नाम सार्थक है। और ये सब नाम इस मन्दिर की महिमा के सूचक हैं।
पर इस मन्दिर का सबसे जानदार वर्णन तो, इसे स्वर्गलोक के नलिनीगुल्म विमान की उपमा दी गई है, उस में समाया हुआ है । मन्दिर का निरीक्षण करनेवाला यात्री मानो स्वयं किसी सुरम्य स्वप्नप्रदेश में पहुँच गया हो और वहाँ किसी स्वर्गीय विमान के सौन्दर्य-वैभव को निहार रहा हो, ऐसे संवेदन का उसे अहसास होता है। चित्त को उन्नत प्रदेश में विचरण कराना यही तो भक्ति और कला की चरितार्थता है।