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________________ महराबें तराशकर बनायी गयी है। भव्यतम शिल्प का यह नमूना है। गर्भगृह के दोनों ओर करीबन २५० / २५० किलोग्राम वजन के दो घंट लटकाये गये है। इन दोनों की संयुक्त ध्वनि ॐ का नाद प्रसारित करती है। ये दोनों घंट पुरुष-ऊर्जा और स्त्री ऊर्जा के प्रतीक माने जाते है, इन पर षट्कोण इत्यादि भौमितिक आकृतियों एवं आंकडों से मंत्र-तंत्र के प्रतीक भी रचाये गये है। (११) यहाँ पर एक शिल्प में रायण वृक्ष की रचना व उसके नीचे भगवान आदिनाथ की चरण पादुका दर्शायी गयी है। यहाँ पर स्थित रायण वृक्ष की स्थापना करीबन ५०० वर्ष पूर्व मंदिर के निर्माण के समय की गयी थी। (१२) यहाँ पर एक त्रिकोण पत्थर में जैनों के परम पवित्र तीर्थस्थान शत्रुंजयगिरि (पालीताणा) को दर्शाया गया है। प्रत्येक जैन की भारी आस्था इस तीर्थभूमि के साथ जुड़ी हुई है। (१३) यहाँ पर स्थित एक पत्थर में मुगल शहनशाह अकबर के बारें में लिखा हुआ है। इस मुगल बादशाह ने सुप्रसिद्ध जैनाचार्य हीरविजयसूरिजी की प्रेरणा एवं उपदेश से पूरे भारत में अहिंसा धर्म का प्रचारप्रसार करते हुए जैन तीर्थस्थानों को विशेष सुरक्षा एवं स्वतंत्र व्यवस्था प्रदान की थी। (१४) इस तीर्थ की विशेष कलाकृति के रूप में हजार सर्पों से लिपटे हुए जैनधर्म के २३ वे तीर्थंकर ध्यानस्थ पार्श्वनाथ की प्रतिमा है जो इर्दगिर्द नागराज धरणेन्द्र एवं नागरानी पद्मावती से युक्त है। एक ही संगमरमर के टुकड़े में शिल्पित यह स्थापत्य राणकपुर की सुंदरतम शिल्पाकृतियों में से एक है। (१५) समय समय पर राणकपुर की यात्रा करने आये अनेक जैन साधुओं ने एवं अन्य कवियों ने इस तीर्थ के नमून सौन्दर्य एवं पवित्रतम् वातावरण के बारे में बहुत कुछ लिखा है। कही इसे देवविमान सा दर्शाया है तो कही इसके दर्शन के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है वैसा भी कहा है। (१६) धरणाशा के भाई रत्नाशा की शिल्पाकृति भी यहाँ पर स्थित है। धरणशाह की मृत्यु के पश्चात् इन्हीं ने सारा अधूरा कार्य संपन्न करवाया था। ु एक विशेष रचना के तौर पर नंदीश्वर द्वीप की शिल्प कला भी मनमोहक बनकर उभरती है। जैन भूगोल के मुताबिक नंदीश्वर द्वीप एक विशाल द्वीप है जहाँ १३/१३ के चार समूह में कुल ५२ जिनालयों की स्थापना है। स्वर्ग के देव देवी यहा उत्सव मनाने जाते हैं। (१७) इस मुख्य मंदिर के अतिरिक्त यहां पर जैनधर्म के २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का मंदिर है जो कि 'सलाटों का मंदिर' के रूप में ख्यात है एवं २३ वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का मंदिर भी हैं। १७वीं सदी में मुगल बादशाह औरंगजेब के द्वारा जैन मंदिरों को तहस नहस कर लूटने की मुहिम का शिकार राणकपुर भी हुआ। हालाँकि मूर्तियों को बचा लिया गया, पर मंदिर और उसका पूरा परिसर खंडहर में तबदील हो गया। इ.स. १९३४में जैन संघ की प्रतिनिधिसंस्था सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेढी के सेठ कस्तूरभाई लालभाई ने अपने सहयोगियो के साथ राणकपुर का दौरा करने के पश्चात् अध्ययनसंशोधन व विचार विमर्श कर के सोमपुरा दलछाराम खुशालदास को मंदिर के पुनरुद्धार का कार्य सौंपा और २०० कारीगरों के साथ आरंभ हुआ यह कार्य करीबन ११ साल तक चला। ARC RGERC 16
SR No.009384
Book TitleRanakpur Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandji Kalyanji Pedhi
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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