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________________ इस मन्दिर के शिखरों, गुंबदों और छतों में भी कलाविज्ञ और भक्तिशील शिल्पियों की मुलायम छेनियों ने कई पुरातन कथाप्रसंगों को सजीव किया है; कई आकृतियों को वाचा प्रदान की है और कई नये शिल्प अंकित किये हैं। इन सब कलाकृतियों का मर्म हृदयंगम होने पर दर्शनार्थी मानों स्थल, काल आदि को भूल ही जाता है और इन मूक दिखाई देनेवाली जीवंत-सी आकृतियों की कथा को जानने-समझने में तन्मय हो जाता है। इस मन्दिर में स्थित सहस्रफणा पार्श्वनाथ तथा सहस्रकूट के कलापूर्ण शिलापट्ट भी यात्रिक के चित्त को बरबस मोह लेते हैं। ___ मन्दिर की सबसे अनूठी व अनुपम विशेषता है उनकी विपुल स्तंभावली। इस मन्दिर को स्तंभों का महानिधिया स्तंभो का नगर कह सकें, इस तरह जगह जगह पर खंभे खड़े किये गये हैं। जिस और निगाह डालें उस ओर छोटे, बडे, मोटे, पतले, सादे या नक्कासी से उभरे हुए स्तंभ नजर आते हैं। मन्दिर के कुशल शिल्पियों ने इतने सारे स्तंभों की सजावट ऐसे नियोजित ढंग से की है कि, प्रभु के दर्शन करने में ये कहीं भी बाधारूप नहीं बनते । मन्दिर के किसी भी कोने में खड़ा हुआ भक्त प्रभु के दर्शन पा सकता हैं। स्तंभो की इतनी विपुल समृद्धि से ही तो इस मन्दिर में १४४४ खंभे होने की बात प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के उत्तर की ओर रायण वृक्ष एवं भगवान ऋषभदेव के चरण हैं । ये भगवान ऋषभदेव के जीवन तथा तीर्थाधिराजश@जय का स्मरण दिलाते है। मन्दिर को जैसे मंज़िलों से रमणीय बनाया गया है, उसी तरह कतिपय (संभवतः नौ) तलघर बनाकर आपत्तिकाल के समय, परमात्मा की प्रतिमाओं का रक्षण हो सके वैसी दूरदर्शी व्यवस्था भी की गई है। मन्दिर की मजबूती के लिये भी ये तलघर शायद उपयोगी सिद्ध हुए होगें; और काल के प्रभाव के सामने मन्दिर को टिकाये रखने में भी उपयोगी बने होंगे। इन तलघरों में बहुत सी जिन प्रतिमायें रखी गई हैं। नन्दीश्वर की नन्दीश्वर दीप एवं शत्रंजय तीर्थ के अंकन ICALCDso da MEET ADRESADO मा MANTRAMMARNATOR M BITAL 10
SR No.009384
Book TitleRanakpur Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandji Kalyanji Pedhi
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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