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________________ बार भोजन करना प्रोषध है। उपवास के दिन पाँचों पापों का त्याग करके, शरीर से ममत्व दूर करने हेतू वैराग्य भाव को धारण करते हुए शास्त्रों का पठन करें। ज्ञान और ध्यान मे समय बिताऐं। वैयावृत्य:- ज्ञान, ध्यान, एंव तप रूपी धन को धारण करने वाले मुनियों को दान देना वैयावृत्य है। यह चार प्रकार का होता है। आहारदान औषधिदान ज्ञानदान | आहारदान:- पडगाहन, उच्चस्थान, पाद प्रक्षालन, पूजन, नमस्कार, मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, और भोजन शुद्धि ये नवधा भक्ति कहलाती है। मुनियों को नवधा भक्ति पूर्वक जो आहार देते है, वही आहार दान हैं। अभयदान औषधिदान:- रोग से ग्रस्त को औषधि दान देना उसके स्वस्थ होने में सहयोग देना, रोगी की सेवा सुश्रुषा करना औषधिदान हैं। ||ज्ञानदान:- मुनियों तथा आर्यिका को शास्त्र देना, शावक एंव श्राविकाओं को स्वाध्याय की प्रेरणा देना, पठन व पाठन द्वारा ज्ञान का प्रसारण करना ज्ञानदान हैं। अभयदान:- मनुष्य, साधु, पशु, पक्षी आदि रोग ग्रस्त का कष्ट निवारण करना अभयदान हैं। मुनियों तथा आर्यिका को पिच्छी कमंडलु तथा वस्त्र दान देना उपकरण दान कहलाता हैं। अत्तम पात्रों मे दान | देना बताया गया हैं। "जाप" ऊँ ह्रीं सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रेभ्यो नमः
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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