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________________ सम्यग्ज्ञानः- जो ज्ञान वस्तु के स्वरूप को प्रत्यक्ष रूप से ज्यों का त्यों जानता है। उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं। इसके के चार भेद कहे गये हैं। प्रथमानुयोग । करूणानुयोग | चरणानुयोग | द्रव्यानुयोग। प्रथमानुयोग:- जो ज्ञान अर्थ, धर्म, काम, और मोक्ष इन चारों पुरूषार्थों को किसी एक महापुरूष के चारित्र को त्रेसठ शलाका पुरूष के पुराण को कहता है उस ज्ञान को प्रथमानुयोग कहते हैं। जैसे पद्म पुराण। करूणानुयोग:- जो लोक अलोक के विभाग को, छः काल के परिवर्तन को, चारों गतियों के परिभ्रमण को और संसार के पाँच परिवर्तन को कहता है। तीन लोक का सम्पूर्ण चित्र दर्पण के समान झलकाता है, उस शास्त्र को करूणानुयोग कहते हैं। जैसे तत्वार्थ सूत्र। चरणानुयोग:-जो शावक और मुनि के आचरण रूप चारित्र का वर्णन करता है, उनके चारित्र की उत्पति, वृद्रि, और रक्षा के साधनों को बतलाता है उसे चरणानुयोग शास्त्र कहते हैं। जैसे रत्नकरण्ड। द्रव्यानुयोग:- जो तत्व अर्थात जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आर्सव, संवर, बंध, मोक्ष, एंव निर्जरा इन सभी तत्वों को सही-सही समझाता हैं। जो निज ओर पर का भान कराने वाला है उसे द्रव्यानुयोग शास्त्र कहते हैं। जैसे समयसार केवलज्ञान या उसे प्रत्यानुयोग का अवघिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान ज्ञान: ज्ञान: श्रुतज्ञान मतिज्ञान मतिज्ञान एंव श्रुतज्ञान:- छह द्रव्यों ( जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल ) की कुछ पर्यायों को जान लेना मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय है। अवघिज्ञान:- अवघिज्ञानका विषय मूर्त पदार्थ अथवा उससे सम्बन्धित जीव की पर्यायों को जानता है। मनःपर्ययज्ञान:- सवविधि ज्ञान के द्वारा जाने गये द्रव्य के अनन्तवें भाग को मनःपर्ययज्ञान ज्ञान जानता हैं। केवलज्ञान:- केवलज्ञान का विषय समस्त द्रव्य और उनकी सम्पूर्ण पर्यायें हैं। केवलज्ञान ही मोक्ष का अंकुर हैं। नयः- द्रव्य या पर्याय की अपेक्षा से किसी एक धर्म के कथन करने को नय कहते हैं।
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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