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________________ “रत्नत्रय” सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान - सम्यकचारित्र सम्यग्दर्शन:- मद आदि पच्चीस दोषों से रहित एंव आठ अंगो सहित पुरूष सम्यग्दर्शन को प्राप्त करता हैं। आठ मद शंकादि आठ दोष छः अनायतन आठ अंग मद:- अपने ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, वैभव, तप, और रूप का गर्व करना आठ मद हैं। दोष:- जिन वचन में संदेह, आत्म स्वरूप से चिगना, विषयों की अभिलाषा, शरीरादि से ममत्व, अशुचि मे ग्लानि, सहधर्मियों से द्वेष, दूसरो की निंदा, ज्ञान की वृद्धि आदि धर्म - प्रभावनाओं मे प्रमाद। मूढता के तीन भेद कहे गये हैं। लोक मूढता देव मूढता गुरु मूढता लोक मूढता :- नदी या सागर में स्नान करके अपने को पवित्र मानना, बालू पत्थर के ढेर लगाने से, पर्वत से गिरकर मरने से, अग्नि में जलकर मरने से घर्म मानना लोक मूढता है। | देव मूढता:- वर प्राप्ति की इच्छा से रागी द्रेषी देव देवियों की उपासना करना देव मूढता है। गुरु मूढता:- जो आरम्भ, परिग्रह, और हिंसा मे सदा आसक्त रहते है। संसार समुन्द्र मे डूब रहे है तिर नही सकते हैं। जो ऐसे पाखंडी गुरुओं को गुरु मानकर उनकी उपासना करते हैं वे पाखंड को बढाने वाले हैं, वे ही गुरु मूढता वाले है। 16
SR No.009383
Book TitleMokshmarg Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain
PublisherRajesh Jain
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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