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________________ तन्त्र अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर (2) प्रगति प्रयोगः- किसी भी शुभ दिन, शुभ चौघड़िया में लगभग ५ सेर साबुत नमक लाकर अपने घर में ऐसी जगह पर रख दें जहाँ उसे पानी नहीं लगे। अर्थात् वह शुष्क बना रहे। इसमें से खाने के लिए एक टुकड़ा भी नहीं निकालें। कहा जाता है कि इस नमक की बरकत से उस घर में किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है। जो लोग अधिक मात्रा में नमक नहीं सहेज कर रख सकते हैं। वे उसकी कम मात्रा कर संचय भी कर सकते हैं। (3) घर के मुख्य द्वार पर तुलसी का पौधा व केले का वृक्ष लगाने से शीघ्र उन्नति होती है। गृह क्लेश पैदा नहीं होता। (4) काले घोड़े के पैर से अपने आप घिस कर टूटी हुई नाल का बहुत महत्व है, इससे शनि ग्रह की शान्ति होती है। मानसिक तनाव दूर होता है। घर में भी सुख शान्ति के लिये मुख्य द्वार पर घिसी हुई नाल लगा दें। (6)दक्षिण द्वार वाले दरवाजे के भवन में रहने से धन हानि एवं अनेक कष्ट हाते है। उपाय- उसके लिए घर पर मिट्टी का बन्दर रखें जिसका मुंह दक्षिण दिशा की ओर हो। (58) शयन कक्ष के लिये निर्देश (1)शयन कक्ष के अन्दर खाने के झूठे बर्तन नहीं रखने चाहिये, इससे घर में रोग उत्पन्न होते हैं, पत्नी बीमार रहने लगती है, और मुख्यत:धन का भी अभाव पैदा हो जाता है। (2) घर में टूटे-फूटे बर्तन, टूटी चारपाई आदि नहीं रखनी चाहिए क्योंकि टूटे-फूटे बर्तनों से कलह रहता है: जबकि टूटी चारपाई से धन की कमी होती है। (3) नित्य स्वच्छता रखने से भी धनागम होता है। यदि ब्रह्ममुहूर्त में झाडू दी जाए तो लक्ष्मी की विषेश कृपा प्राप्त होती है तथा घर में सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। (4) सोते समय उत्तर या पश्चिम दिशा की और सिर करके भायन करने से आयु कम होती है। (5) घर, दुकान या फैक्ट्री में जितनी भी घड़िया हों उन्हें सदैव चालू रखें। इससे लक्ष्मी चक चलता रहता है अर्थात् बन्द घडियाँ हों तो उन्हें सदैव चालू रखें। क्योंकि घड़ियां बंद हों तो अशुभ होता है, धनागम नहीं होता। (6) शयन कक्ष में कभी झाडू, तेल का कनस्तर, इमामदस्ता, अंगीठी इत्यादि चीजें नहीं रखनी चाहिये। इनसे व्यक्ति को बुरे स्वप्न, रोग, चिन्ता और कलह बनी रहती है। (7) यदि किसी प्रकार का कष्ट हो तो पलंग के नीचे तांबे के बर्तन में पानी रखकर सोना चाहिए अथवा अपने तकिए के नीचे लाल चंदन रखना चाहिए अथवा भयंकर 454
SR No.009382
Book TitleTantra Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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