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अधिक बैठने का अभ्यास किया जाता है, उतना अधिक शरीर एवं मेरु दण्ड का
संतुलन बना रहता है। शरीर का संवदेन तंत्र अधिक सक्रिय रहता है। ध्यान में एकाग्रता आती है। भगवान महावीर को इसी आसन में ध्यान करते हुए केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई
ताडासन से रोग ग्रस्त मांसपेशियों का निदान
हमारा शरीर मज्जा तंत्र, नाड़ी तंत्र अस्थि तंत्र आदि अनेक तंत्रों से मिलकर बना होता है। रोग की अवस्था में सभी तंत्रों की कार्य प्रणाली प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से कम ज्यादा अवश्य प्रभावित होती है। अतः किसी भी विधि द्वारा यदि किसी भी तंत्र को पूर्णतः स्वस्थ कर लिया जाता है तो, शरीर में असाध्य एवं संक्रामण रोगों की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। कमजोर मांस पेशियों का निदान करने में ताडासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस आसन में दोनों पंजों के बल जितनी देर खड़ा रहा जा सकता उतनी देर तक खड़े होकर दोनों हाथों को सिर से ऊपर की तरफ जितना सहन हो सके, खिंचाव दिया जाता है । परिणाम स्वरूप पगथली से लगाकर गर्दन तक सारी मांसपेशियों में तनाव यानि खिंचाव होने लगता है। परिणामस्वरूप, जो-जो मांसपेशियाँ अशक्त अथवा कमजोर होती हैं, उनमें उपस्थित विकारों के अनुरूप दर्द एवं पीड़ा होने लगती है । जितना अधिक दर्द होता है, उतनी ही वे मांसपेशियाँ विकार ग्रस्त होती हैं। साधारण अवस्था में उन मांसपेशियों में दर्द की अनुभूति न होने से उनके रोगों का जनसाधारण को प्रायः पता नहीं चलता, परन्तु वे रोग को अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य सहयोग करती हैं। यदि उन पीड़ाग्रस्त मांसपेशियों का आगे के अध
में बतलाई गई उपचार पद्धतियों द्वारा उपचार कर ठीक कर लिया जाता है। तो, शरीर में किसी भी नाम से उपस्थित प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रोग शीघ्र ठीक होने लगता है।
शवासन
शवासन शरीर के शिथिलीकरण का सरलतम उपाय है। उस अवस्था में ' मांसपेशियों का हलन चलन बंद हो जाने से, मांसपेशियों की सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाने वाली संवेदना नाड़ी तथा मस्तिष्क से मांसपेशियों को निर्देश लाने वाली क्रियाशील नाड़ी (मोटर नर्व) दोनों का कार्य बंद हो जाता है। अतः शवासन में हम जितना अधिक निष्क्रिय होते हैं, उतना ही अधिक मांसपेशियों को आराम मिलता है । ' शारीरिक आवश्यकतानुसार आसनों का विभाजन आसन वैसे तो अनेक होते हैं। फिर भी इनको मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
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