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पंच महाभूत का सिद्धान्त
भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति के अनुसार संसार के सभी चल-अचल पदार्थों की संरचना में आकाश, वायु, अग्नि, पानी और मिट्टी अर्थात् पृथ्वी आदि पंच महाभूत तत्त्वों की अहं भूमिका होती है। तुलसी दास जी ने भी कहा है --- “क्षिति जल पावक.गगन समीरा पंच रचित यह उद्यम शरीरा। उनकी इस मान्यतानुसार शरीर के निर्माण, संचालन, नियन्त्रण का प्रमुख आधार भी ये पंच महाभूत होते हैं। पंच तत्त्वों के सहयोग से ही अधिकांश गतिविधियाँ होती हैं। आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र आदि में शारीरिक रोगों का एक प्रमुख कारण इन पांच तत्त्वों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कारणों से असंतुलन माना गया है। .
- प्रत्येक व्यक्ति में इन पांचों तत्त्वों का अलग-अलग अनुपात होता है। किसी में कोई तत्त्व अधिक होता है तो, किसी अन्य में दूसरा तत्त्व अधिक होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्त ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति में पंच तत्त्वों की भिन्नता के अनुसार अलग-अलग होता है। इसी कारण दो जुड़वा भाई अथवा बहनों का स्वभाव, चरित्र और जीवन एक जैसा नहीं होता।
शरीर में पंच तत्त्व का प्रभाव द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों के अनुसार बदलता रहता है। हमेशा एक जैसा नहीं रहता। कभी कोई तत्त्व प्रभावी होता है तो थोड़े समय पश्चात् अन्य तत्व। प्रत्येक तत्त्व के. तरंगों की गति, उनके स्वाद, सुगन्ध, स्पर्श आदि की संवेदनाएँ और अभिव्यक्ति अलग-अलग होती हैं। वैसे प्रत्येक तत्त्व का. संबंध सारे शरीर, मन और मस्तिष्क से होता है। फिर भी वे शरीर की विभिन्न क्रियाओं, अंगों, अवयवों, संवेदनाओं को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करते हैं।
: पृथ्वी तत्त्व . . . पृथ्वी ठोस होती है। अतः शरीर में जो ठोस पदार्थ होते हैं, वे पृथ्वी तत्त्व से अधिक प्रभावित होते हैं। जैसे हड्डियाँ, मांस पेशियाँ, त्वचा, नाखून, बाल इत्यादि। पांचों तत्त्वों में पृथ्वी तत्त्व सबसे भारी होता है। पृथ्वी सभी. को आधार देती हैं। शरीर में पैर उठते-बैठते, चलते-फिरते प्रायः शरीर को आश्रय देते हैं। शरीर का भार
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