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________________ आजकल अधिकांश व्यक्ति प्रायः भोजन शरीर की आवश्यकतानुसार नहीं करते, अपितु मजबूरी और स्वाद की प्राथमिकता के अनुसार करते हैं। भोजन से न केवल स्वाद,अपितु शक्ति भी मिलनी चाहिए। हमें जीने के लिये भोजन करना चाहिये। परन्तु आजकल प्रायः हम भोजन के लिये जीते हैं, ऐसा समझा जाये तो आश्चर्य नहीं। गंदी से गंदी वस्तुओं को खाते समय छान बीन नहीं करते। मात्र उस पर डाली गई सुगन्ध, आकर्षक पेकिंग, मन लुभावने भ्रामक विज्ञापनों से भ्रमित हो स्वाद की लोलुपता के कारण स्वविवेक न होने से ग्रहण करते तनिक भी संकोच नहीं करते। पाचन हो या न हो खाना एक रिवाज बन गया है। . इसी कारण आज दुनिया में 80 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति खाने का विवेक न होने अथवा ज्यादा खाने से बीमार होता है। इसीलिये तो कहा गया है कि "More Dishes More Diseases" अर्थात् "जितना ज्यादा खाना उतने ज्यादा रोग।" हमारे यहां लोकोक्ति प्रसिद्ध है – “एक समय खाने वाला योगी, दो समय खाने वाला भोगी, तीन समय खाने वाला रोगी तथा उससे ज्यादा खाने वाला महा रोगी हम स्वयं आत्म निरीक्षण करें कि हम कौन सी श्रेणी में हैं। इसी कारण बाह्य रूप से भले ही अपने आपको स्वस्थ समझें, हमारे शरीर में परोक्ष रूप से सैंकड़ों रोग होते हैं। बार-बार भोजन करना. हानिकारक . हमारे ऋषि मुनियों ने एकासन करने की जो बात कही उसके गछे यही उद्देश्य था कि मुँह में जब चाहे कुछ न डाला जाये । जो कुछ खाना हो एक या दो बार ही खाय जाये। ताकि हमारे आमाशय को बाकी समय पूर्ण आराम मिल जाये। जब हम कोई भी पदार्थ मुंह में डालते हैं, चाहें उसकी मात्रा बहुत कम ही क्यों न हो. सारी पाचन व्यवस्था को सजग और सक्रिय हो कार्य करना पड़ता है। परिणामस्वरूप जब हमारा मुख्य भोजन होगा तब वे अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नहीं कर पाते। समय पर अच्छी स्वाभाविक भूख नहीं लगती। भोजन समय की नियमितता नहीं रहती। इसी कारण आज अधिकांश व्यक्तियों का पाचन प्रायः ठीक नहीं होता। जितनी कम बार खाया जायेगा, उतनी भूख अच्छी लगेगी और पाचन अच्छा होगा। अतः जो मधुमेह अथवा पाचन संबंधी रोगों से पीड़ित हैं. उन्हें तो बार-बार कभी नहीं खाना चाहिये । परन्तु आज के आहार विशेषज्ञों की सोच इसके विपरीत पायी गई हैं। रोगी को थोड़ा थोड़ा.बार-बार खाने के लिये प्रेरित किया जाता है। जिस पर बिना किसी पूर्वाग्रह शोध एवं चिन्तन की आवश्यकता है, ताकि मुधमेह तथा पाचन रोग जैसी असाध्य बीमारी से रोगी को राहत दिलाई जा सके। भोजन कैसा हो? आजकल अप्राकृतिक रसायनिक खाद के उपयोग एवं कीटाणुनाशक औषधियों के अधिक प्रयोग के कारण बाजार में उपलब्ध अधिक खाद्यान्न, फल और • . 40
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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