SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारणवश नासिका के रोम में रुकावट नहीं हो पाती। ये झिल्लियाँ श्वास की वायु को आवश्यक शुष्कता - आद्रता भी प्रदान करती है । तीसरी बात नाक से ही गंध और सुगन्ध की अनुभूति होती है। गंध की अनुभूति हानिकारक वायु के अन्दर जाने से रोकती है। जैसे ही हमें किसी दुर्गन्ध की अनुभूति होती है - हम तुरन्त श्वास लेना बन्द कर देते हैं और जल्दी से जल्दी वहाँ से दूर होकर ताजी हवा वाले स्थानों में पहुँचने का प्रयास करते हैं । I इसके विपरीत मुँह में न तो बाल होते है और न श्लेषमा झिल्लियाँ । जो वायु का परिमार्जन अथवा शुद्धि कर सकें। दूसरा मुँह का छिद्रं नाक की अपेक्षा इतना : बड़ा होता है कि उसमें वायु बिना रुकावट फेफड़ों तक पहुँच सकती है। तीसरी नाक के माध्यम से फेफड़ों तक श्वास नली लम्बाई मुंह से फेफड़ों की दूरी से ज्यादा होती है । परिणाम स्वरूप नाक से फेफड़े तक पहुंचते हुये वायु का तापमान शरीर के अनुकूल हो जाता है । परन्तु मुँह से श्वास लेने पर ऐसा कम संभव होता है । अतः जो व्यक्ति मुँह से श्वास लेते हैं, विशेष कर रात में, सवेरे उनका मुँह सूखा हुआ और बदबूदार होता है, जिससे विभिन्न रोगों के होने की संभावना बनी रहती है। 'नेति क्रिया श्वास संबंधी रोगों के उपचार हेतु नेति क्रिया सर्वोत्तम विश्वसनीय सहज पद्धति है । नासिका के छिद्रों की तरल पदार्थों से सफाई करने की विधि को नेति क्रिया कहते हैं। नेति करने से विभिन्न अंगों से आकर नासिका में समाप्त होने वाले स्नायुओं के छोर सक्रिय होते हैं। जिससे मस्तिष्क एवं उन स्नायुओं से जुड़े तंत्रों को लाभ पहुँचता है, जिनकी असक्रियता एलर्जी का प्रमुख कारण होती है । अतः जिन व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की एलर्जी होती है, उनके लिये नेति क्रिया अत्यन्त लाभकारी होती है। नेति क्रिया से आज्ञा चक्र भी सक्रिय होता है। I ति के लिए जल शुद्ध और गुनगुना होना चाहिए। उसमें थोड़ा सा नमक मिला देना चाहिये। नमकीन जल साधारण जल की अपेक्षा नाक की नाजुक रक्त नलिकाओं और श्लेष्मा झिल्लियों द्वारा सरलतापूर्वक शोषित नहीं किया जा सकता। जबकि साधारण जल सरलता से शोषित किया जा सकता है । यद्यपि साधारण जल से किसी प्रकार की हानि नहीं होती, फिर भी नाक में पीड़ा और बैचेनी का अनुभव हो सकता है। नेति क्रिया के लिये विशेष प्रकार का नेति का बर्तन मिलता है। नेति लोटे को नमकीन पानी से भर कर किसी एक नथूने से पानी डालें और दूसरे छिद्र को मस्तिष्क को घूमाकर ऐसा रखें कि वह पान दूसरे छिद्र से बाहर निकल जाये । फिर यही क्रिया दूसरे नथूने से भी करें। उसके पश्चात् बारी-बारी से एक-एक नथूने को बन्द कर दूसरे नथूने से जल्दी जल्दी और दबाव के साथ श्वांस निकाले! जिससे नासिका मार्ग की सफाई हो जाती है। पानी की अपेक्षा स्वमूत्र से नेति करना 30
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy