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इसके अतिरिक्त केन्द्रीय स्नायु संस्थान का मुख्य भाग भी मेरू रज्जू (Spinal Cord) रीढ़ की हड्डी में स्थित होता है। मेरू रज्जू के दोनों तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर स्नायु नाड़ियों के जोड़े निकलते हैं। स्नायु संस्थान शरीर के समस्त संस्थानों एवं अंगों का नियन्त्रण और संचालन करता है । मस्तिष्क को मिलने वाले सारे संदेश और मस्तिष्क द्वारा प्रतिक्रिया स्वरूप भेजे गये आवश्यक निर्देश और आदेश की पालना नाड़ी संस्थान के माध्यम से ही संभव होती है। शरीर का प्रत्येक अंग ज्ञान तन्तु द्वारा संचालित होता है और ये सभी ज्ञान तन्तु प्रत्यक्ष रूप से रीढ़ की हड्डी से जुड़े होते हैं ।
असंतुलन का परीक्षण
मेरू दण्ड का नाड़ी संस्थान से गहरा सम्बन्ध होता है। हमारी सारी संवेदनाओं का आदान-प्रदान रीढ़ के माध्यम से होता है। वजन उठने, झुक कर चलने अथवा अन्य किसी कारण से मेरू दण्ड के किसी भाग में ज्यादा खिंचाव आ जाने से रीढ़ असंतुलित होती है। सरवायकल स्पोन्डोलायसिस, साईटिका, स्लीप डिस्क, जोड़ों में दर्द आदि रोगों का कारण मेरूदण्ड का असंतुलन ही होता है। रीढ़ में असंतुलन कितना है? कितने प्रतिशत है? इस बात की जानकारी निम्न विधि द्वारा - मालूम की जा सकती है। रोगी को सीधा पालकी आसन में सुलाबें तथा उसकी दोनों ... हथेलियों को आपस में गर्दन के नीचे रखावें। रोगी का कमर के बल बिना कोई सहारा लिये बैठने का कहें। यदि इस स्थिति में रोगी बैठ जायें तो उसका मेरूदण्ड काफी अच्छा समझना चाहिये और ऐसी स्थिति में रीढ़ का कोई रोग ज्यादा पुराना नहीं होता। अगर रोगी न उठ सके तो मेरू दण्ड में 15: असंतुलन समझना चाहिये । दूसरी स्थिति में पैरों को सीधा करके हथेलियों को गर्दन के नीचे रखते हुये बिना सहारा दिये उठने कहें। यदि रोगी इस स्थिति में भी न उठ सके तो esn.Me820 1s30% असंतुलन समझना चाहिये ।
तीसरी स्थिति में दोनों हाथों को जमीन से स्पर्श करते हुए सिर से ऊपर पूरा ले जाते हुये रोगी को सोने को कहें। यदि इस स्थिति में भी बिना सहारा रोगी न बैठ सकता हो तो असंतुलन 30% से भी अधिक समझना चाहिए। तत्पश्चात् रोगी की दोनों पिण्डलियों को दूसरा व्यक्ति दबाये रखे, फिर भी रोगी न बैठे सके तो मेरू दण्ड में 40 से 50% असंतुलन समझना चाहिये । यदि रोगी के दोनों घुटनों को दबाये रखने के बावजूद भी रोगी न बैठ सके तो मेरूदण्ड में 50 से 60% खराबी समझनी चाहिये। जितना अधिक असंतुलन होगा, रोग उतना ही पुराना, संक्रामक होगा और उपचार में समय भी उसके अनुपात में अधिक लगेगा । मेरूदण्ड का असंतुलन निम्न विधि द्वारा सरलता से दूर किया जा सकता हैं ।
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