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________________ त्य . . . नाड़ी (बांये नथूने) से श्वास लेकर ठीक किया जा सकता है। ऐसे रोगियों को दाहिना नथूना बन्द कर श्वास लेना चाहिये। दाहिनी करवट सोना चाहिये। इसके विपरीत जिन्हें सदी के प्रकोप से रोग हो जाय उन्हें सूर्य नाड़ी (दाहिने नथूने) से श्वास लेनी . . व बांयी करवट सोने से रोग मुक्त होने में सहायता मिलती है। शरीर गरम अथवा ठण्डक की भाषा समझता है। अतः स्थानीय पीड़ाओं में शरीर का जो भाग ग्रस्त है उसका निरीक्षण करें। यदि वह उष्णता अथवा गरमाश हो तो ठीक उसके दूसरी तरफ उसी स्थान पर रगड़ने, गर्म सेंक करने अथवा बाह्य अन्य किसी भी प्रक्रिया द्वारा शरीर में गर्मी पहुंचाकर दोनों तरफ संतुलन करने से रोग में राहत मिलती है। इसी प्रकार यदि रोग ग्रस्त भाग ठण्डा हो तो उसके ठीक . विपरीत भाग में ठण्डे पानी, बर्फ या अन्य किसी विधि द्वारा शरीर में ठण्डक पहुंचाने से रोग में राहत मिलती हैं . '... शारीरिक असंतुलनों के परीक्षण एवं ..उपचार की विधियाँ . असंतुलन के लक्षण व्यक्ति की पगथली शरीर के अन्य भागों से ज्यादा ठण्डी. नहीं होनी चाहिये। जिस पगथली पर सारे शरीर का वजन आता है और वही ठण्डी हो, इसका मतलब शरीर में रक्त का प्रवाह विशेष रूप से पैरों में बराबर नहीं होता। अगर पगथली ठण्डी हो तो सर्व प्रथम हथेली से पगथली को इतना रगड़ें कि उसकी ठण्डक दूर हो जाये। इससे हथेली की ऊर्जा भी पगथली को मिल जावेगी। जिससे रोगी के शरीर में रक्त प्रवाह सुव्यवस्थित हो जायेगा तथा उसमें स्फूर्ति आने से . उपचार प्रभावशाली हो जायेगा। यदि पगथली को हथेली से रगड़ना संभव न हो तो नायलोन के ब्रुश या अन्य विधि द्वारा रगड़ कर भी पगथली को गरम किया जा सकता है, परन्तु जितना हथेली से रगड़ने पर लाभ होगा उतना भौतिक उपकरणों से रगड़ने 'पर लाभ नहीं होगा। क्योंकि भौतिक उपकरणों में चेतना का अभाव होता है। हमने प्रायः अनुभव किया है कि जो रोगी मरणासन्न पर होते हैं उनके हाथ पैर ठण्डे पड़ने ' लगते हैं। अतः यदि उनके परिजन थोड़ा विवेक रख एवं पगथली को गरम करने . का प्रयास करें तो व्यक्ति को जीवनदान मिल सकता है। इसीलिये तो हमारे यहाँ लोकोक्ति प्रसिद्ध है - "पैर गरम, पेट नरम और सिर ठण्डा, फिर डाक्टर आवे तो मारो डण्डा अर्थात् ऐसा व्यक्ति प्रायः स्वस्थ होता है। शरीर को संतुलित रखने के लिये हमें अपने दोनों पंजों पर . शरीर का पूरा वजन देकर जितनी देर बिना कोई सहारा लिए ताडासन में खड़े रहने का अभ्यास करना चाहिए। इसी प्रकार वज्रासन में बैठने से वीर्य विकार संबंधी सारे 17
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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