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पीपर, मरिच), समभाग इन सबों के चूर्ण को पात्र में बिछाकर उसके ऊपर सेन्धनमक रखकर मुख बन्द कर दें और जलाकर चूर्ण बना दें। इस चूर्ण को दही के पानी के साथ प्रयोग करें। यह गुल्मरोग, उदररोग, शोथ, पाण्डुरोग तथा अर्श रोगों को नष्ट करता है। ...
त्रिगुणोत्तरं भेषजम्- .. .
गुल्मरोग में हिग्वादि योगहिगगुत्रिगुणं सैन्धवमसमात्रिगुणं तु तैलमैरण्डम् ।
तत्रिगुणरसोनरसं गुल्मोदरवर्मशूलघ्नम् ।। अर्थ : हींग एकभाग, सेन्धानमक तीन भाग, एरण्ड तैल नवभाग तथा लहसुन का रस सत्ताईस भाग इन सबको मिलाकर पान करने से यह योग गुल्म रोग, उदररोग, आन्त्र वृद्धि तथा शूल को नष्ट करता है।
वात गुल्म में मातुल्गादि योगमोतुलुगरसो हिगगु दाडिम बिडसैन्धवम् ।
सुरामण्डेन पातव्यं वातगुल्मरूजापहम् ।। अर्थ : विजौंरा नींबू का रस, हींग, अनारदाना, विड नमक तथा सेन्धा नमक समभाग इन सबों का चूर्ण सुराभण्ड में मिलाकर पान करें। यह वात गुल्म की • पीड़ा को दूर करता है।
गुल्म रोग में शुण्ठयादि योगशुण्ठयाः कर्श गुडस्य द्वौ धौतात्कृष्णतिलात्पलम्। खादन्नेकत्र सज्चूर्ण्य कोष्णक्षीरानुपो जयेत् ।।
वातहृद्रोगगुल्मार्थोयोनिशूलशकृद्ग्रहान्। अर्थ : सोंठ एक कर्ष (100 ग्राम), गुड़ दो कर्ष (200 ग्राम) तथा धोया हुआ छिलका रहित काला तिल एक पल (50 ग्राम) इन सबको एकत्र चूर्ण बनाकर थोड़ा गरम दूध के अनुपान के साथ खाने से वातरोग, हृदय रोग, गुल्म रोग, अर्शरोग, योनि शूल तथा मूल बिबन्ध को दूर करता है।
वात गुल्म में एरण्ड तैल का प्रयोगपिबेदेरण्डतैलं तु वातगुल्मी प्रसन्नया ।।
श्लेष्मण्यनुबले वायो पित्तं तु पयसा सह। अर्थ : वातज गुल्म का रोगी कफ के अनुबन्ध रहने पर एरण्ड तैल प्रसन्ना के साथ पान करे और पित्त के अनुबन्ध होने पर एरण्ड तैल तथा गरम दूध के साथ पान करे।
वात गुल्म में विरेचन एवं रक्तमोक्षण का विधान_ विवृद्ध यदि वा पित्तं सन्तापं वातगुल्मिनः।।। कुर्याद्विरेचनीयोऽसौ सस्नेहैरानुलोमिकैः। . .
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