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________________ ग्रास में घी के साथ मिलाकर खाने के लिये कहा गया है। "अपाने विगुणे वायौ भोजनाग्रे प्रशस्यते।" इस नियम के अनुसार आचार्य का यह अभिमत है कि गुल्म और अपानवायु की विकृति में इसका प्रयोग करना चाहिए। अधि कांश वैद्य वर्ग तथा कुछ टीकाओं में भी अष्टम का अर्थ एक द्रव्य का आठवाँ भाग देते हैं किन्तु यह अर्थ उचित नहीं है। अष्टम शब्द में अष्टन् शब्द से पूरण . अर्थ में मयट् प्रत्यय करने से अष्टम बना है। अतः सात द्रव्यों के साथ आठवाँ हींग लेना चाहिए। अर्थात् सात समान भाग में लेते हुए उसी मात्रा में आठवाँ हींग देना चाहिए। - व्याधिशार्दूल:.. गुल्म में हिंग्वादि शार्दूल चूर्णहिगंगूग्राबिडशुण्ठयजाजिविजया-वाटयाभिधानामयै श्चूर्णः कुम्मनिकुम्भशूलसहितैर्भागोत्तरं वर्धितैः! . पीतः कोष्णजलेन कोष्ठजरूजो गुल्मोदरादीनयं शार्दूल: प्रसभं प्रमथ्य हरति व्याधीन् मृगौघानिव।। अर्थ : हींग एक भाग, बालवच दो भाग, विड नमक तीन भाग, सोंठ चार भाग, जीरा पाँच भाग, हरे छ: भाग, बला मूल सात भाग, कूट आठ भाग, कुम्भ (निशोथ) नव भाग, निकुम्भ मूल, (दन्ती) दस भाग इन सबका चूर्ण बनावें। यह गरम जल से पान करने से उदर शूल, गुल्म रोग तथा उदर रोग आदि रोगों को हठ पूर्वक दूर करता है। जैसे शेर हठपूर्वक मृग समूहों को मथ कर नष्ट करता है। नाराचचूर्णम गुल्म रोग में सैन्धवादि चूर्ण-: सिन्धूत्थपथ्याकणदीप्यकाना. चूर्णानि तोयैः पिबतां कवोष्णैः। प्रयाति नाशं कफवातजन्मा नाराचनिर्भिन्न इवामयौघः ।। अर्थ : सेन्धानमक, हरे, पीपर तथा अजवायन समभाग इन सबके चूर्ण को थोड़ा गरम जल से पान करने वाले व्यक्तियों का वातजन्य रोग समूह नष्ट हो जाता है। जैसे वाण द्वारा वृक्ष समूह नष्ट हो जाता है। गुल्म रोग में पूतिकादि भस्म पूतीकपत्रगजचिर्भटचव्यवंहि , व्योषं च संसतरचितं लवणोपधानम्। दग्ध्वाव विचूर्ण्य दधिमसतुयुतं प्रयोज्यं ।। गुल्मोदरश्वयथुपाण्डुगुदोद्भवेषु ।। अर्थ : पूति करंज्ज के पत्र, नागकेशर, चिर्भट चव्य, चित्रक तथा व्योष (सोंठ, . . 97 .
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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