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________________ भोजन के बाद पित्तहरण करने वाले खीर को बार-बार खाय । जो गुरू, मेद्य तथा कफकारक भोजन होते हैं वे सभी अत्यधिक प्रबुद्ध अग्नि के लिए हितकर हैं और भोजन कर दिन में सोना भी अत्यधिक प्रबुद्ध अग्नि के लिए हितकर है। अत्यग्नि से मृत्यु - आहारमग्निः पचति दोषानाहारवर्जितः । . धातून् क्षीणेशु दोषेषु जीवितं धातुसगंक्षये ।। अर्थ : जाठराग्नि आहार को पचाती है। आहार के अभाव में दोषों के क्षीण हो जाने पर धातुओं को पचाती है तथा धातुओं के क्षय हो जाने पर मनुष्य के जीवन को नष्ट कर देती है। जाठराग्नि की विशेषताएतत्प्रकृत्यैव विरूद्धमन्नं संयागसंस्कारवशेन चेदम् । इत्याद्यवय यथेष्टचेष्टाभचरन्ति यत्साऽग्निबलस्य शक्तिः || तस्मादग्नि पालयेत्सर्वयत्नैस्तस्मिन्नष्टे याति ना नाशमेव । दोषैर्ग्रसते ग्रस्यते रोगसगंधैर्युक्ते तु स्थाननीरूजो दीर्घजीवी ।। अर्थ : यह आहार प्रकृति (स्वभाव) से विरूद्ध है, यह आहार संयोग से विरूद्ध है, यह संस्कार से विरूद्ध है, यह काल विरूद्ध है, यह देश विरूद्ध है, यह मात्रा विरूद्ध है, यह पात्र विरूद्ध है इत्यादि बातों का विचार किये बिना ही आहार करते हुए भी अपनी इच्छा के अनुसार चेष्टा करते हैं अर्थात् जीवित तथा निरोग रहते हैं । वह अग्नि बल की विशेषत है । अतः सभी प्रकार के उपायों से अग्नि की रक्षा करे। अग्नि के नष्ट हो जाने से मनुष्य नष्ट हो जाता है। दोषों के प्रकोप होने से मनुष्य रोग समूहों में ग्रसित हो जाता है। अग्नि के उपयुक्त रहने पर मनुष्य निरोग तथा दीर्घजीवि होता है । 00000 66
SR No.009378
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 03 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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