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द्वितीय अध्याय
. अथातोऽतिसारचिकित्सितं व्याख्यास्यामः।
। इति हे स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः।। . अर्थ : अर्श चिकित्सा व्याख्यान के बाद अतिसार चिकित्सा का व्याख करेंगे ऐसा आत्रेयादि महर्षियों ने कहा था।
अतिसार में चिकित्सा सूत्रअतीसारो हि भूयिष्ठं भवत्यामाशयान्वयः। हत्वाऽग्नि वातजेऽप्यस्मात् प्राक्तस्मिल्लंघनं हितम् ।। अर्थ : अतिसार रोग अधिकतर जाठराग्नि को मन्द कर आमाशय से.सम् Iत होता है। अतः वातज-अतिसार में भी पहले लघंन कराना हितकर
अतिसार में वमन का निर्देश- . शूल, आनाह तथा लाला नाव से पीड़ित अतिसार के रोगी को वमन करांना हितक
दोषाधिक्य अतिसार में पहले उपेक्षादोषाः सन्निचिता ये च विदग्धाहारमूच्छिताः।।
अतिसाराय कल्पन्ते तेषपेक्षैव भेषजम् । .. भृशोत्क्लेशप्रवृत्तेषु स्वयमेव चलात्मसु।।। अर्थ : विदग्ध (पक्व-अपक्व) आहार से मिले हुए जो संचित दोष अति को उत्पन्न करते हैं। उन अत्यधिक उत्कलेश उत्पन्न कर प्रवृत होने वाले स्वयं गतिमान होने वाले दोषों में पहले उपेक्षा ही औषध है। अर्थात् दोष अच्छी तरह निकलने देना ही औषध है। .. विश्लेशण : उपेक्षा का तात्पर्य अतिसार में प्रवृत दोष या मल को रोकने चेष्टा नहीं करनी चाहिए। किन्तु औषधि दोषों या मलों को पाचन के पाचन की देनी चाहिए।
.. आमातिसार में संग्राही उपचार का निषेध- ... .... प्रयोज्यं न तु सङ्ग्राहि पूर्वमामातिसारिणि।
अपि चाध्मानगुरूताशूलस्तैमित्यकारिणि ।।
प्राणदा प्राणदा दोषे विबद्धे सम्प्रवर्तिनी। अर्थ : आमातिसार के रोगी के लिए पहले संग्राही उपचार का प्रयोग न