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चतुर्थ अध्याय.
अथाऽतः श्वासहिमाचिकित्सितं व्याख्यास्यामः ।
. इति ह समाहुरात्रेयादयो महर्शयः । अर्थ : कास चिकित्सा के व्याख्यान के बाद श्वास-हिमा चिकित्स व्याख्यान करेंगे ऐसा आत्रेयादि महर्षियों ने कहा था
श्वास तथा हिक्का का सामान्य चिकित्सा सूत्रश्वासहिध्मा यतसतुल्यहेत्वाद्याः साधनं ततः।। ___ तुल्यमेव तदातं च पूर्व स्वेदैरूपाचरेत्। स्निग्धैर्लवणतैलाक्तं तैः खेशु ग्रथितः कफः।। सुलीनोऽपि विलीनोऽस्य कोष्ठं प्राप्तः सुनिहरः। स्रोतसां स्यान्मृदुत्वं च मारूतस्यानुलोमता।। स्विन्नं च भोजयेदन्नं स्निग्धमानूपजै रसैः।
दध्युत्तरेण वा दद्यात्ततोऽस्मै वमनं मृदु ।। अर्थ : श्वास रोग तथा हिक्का रोग के कारण उत्पत्ति स्थान तथा दोषतुल्य। होते हैं अतः उनको दूर करने के साधन भी समान ही होते है। श्वासे तथा से पीड़ित रोगीको वक्ष प्रदेश पर तैल तथा नमक लगाने के बाद पहले स्वदेन कराये। इससे स्रोतसों में चिपका भी गाँठदार कफ विलीन होकर कोष्ठ में आ जाता है और सुगमता से निकालने योग्य हो जाता है। कफ जाने से स्रोतस मुलायम हो जाते हैं और वायु का अनुलोमन हो जाता है करने के बाद रोगी को स्निग्धभोजन के साथ या दही के मलाई के साथ दें बाद रोगी को मृदु वमन कारक औषध दें।
श्वास तथा हिक्का रोग की चिकित्साविशेषात्कास-वमथु-हृदग्रह-स्वरसादिने। पिप्पलीसैन्धवक्षौद्रयुक्तं वाताविरोधि यत् ।। निहते सुखमाप्तोति सकफे दुष्टविग्रहे।
स्रोतःसु च विशुद्धेषु चरत्यविहतोऽनिलः ।। अर्थः श्वास तथा हिक्का रोग के साथ कास, वमन, हृदय की गति में तथा स्वर भेद हो तो पीपर का चूर्ण तथा सेन्धा नमक मधु मिलाकर जो व
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