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________________ मदशक्तिमनुज्झन्ती या रूपैर्बहुभिः स्थिता।। यामासाद्य विलासिन्यो यथार्थ नाम बिनति। कुलागनाऽपि यां पीत्वा नयत्युद्धतमानसा।। अनगलिगितैरगः क्वाऽपि चेतो मुनेरपि। . तरगंभगभृकुटीतर्जनैर्मानिनीमनः।। एक प्रसाधं कुरुते या द्वयोरपि निर्वतिम्।। यथाकामं भटावाप्तिपरिसष्टाप्सरोगणे।। . तृणवत्पुरूषा युद्धे यामासाद्य त्यजन्त्यसून्। यां शीलयित्वाऽपि चिरं बहुधा बहुविग्रहाम् ।। नित्यं हर्षातिवेगेन तत्पूर्वमिव सेवते। . शोकोद्वेगारतिभयैर्या दृष्ट्वा नाभिभूयते।। गोष्ठीमहोत्सवोद्यानं न यस्याः शोभते विना। . स्मृत्वा च बहुशो वियुक्तः शोचते यया ।।। अप्रसन्नाऽपि. या प्रीत्या प्रसन्ना स्वर्ग एव या। अपीन्द्रं मन्यते दुःस्थं हृदयास्थितया यया।। अनिर्देश्यसुखास्वादा स्वयंवेद्यैव या परम् । इति चित्रास्ववस्थासु प्रियामनुकरोति या।। प्रियाऽतिप्रियतां याति यत्प्रियस्य विशेषतः। या प्रीतिर्या रतिर्या वाग या पुष्टिरिति च स्तुता। देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षसमानुषैः। पानप्रवृतौ सत्यां तां सरां तु विधिना पिबेत्।। अर्थ : युक्ति पूर्वक (विधिपूर्वक) मद्यपान करने से मद्यजन्य रोग नहीं उत्पन्न होता है। अतः मद्य का प्रयोग कहेगें जो केवल सुख के लिए ही होगा। विश्लेषण : जो मद्य अश्विनी कुमारों के महान् तेज को, सरस्वती के बल को, इन्द्र के वीर्य को और विष्णु के प्रभाव को धारण करता है, जो मद्य कामदेव . का अस्त्र है, बलभद्र का पुरूषार्थ है और सौत्रामणी यज्ञ में ब्राह्मण के मुख में तथा अग्नि में आहुति के रूप में हवन किया जाता है; जो मद्य सभी औषधि गयों से परिपूर्ण समुद्र के मंथन करने से देवताओं तथा असुरों के सहित लक्ष्मी, चन्द्रमा तथा अमृत के साथ मधु माधव ऐरेय सीघु शौद्र तथा आसव आदि के अनेक रूपों में मद्यशक्ति से युक्त उत्पन्न हुआ है; जिस मद्य को पानकर विलासिनी स्त्रियाँ अपने विलासिनी नाम को सार्थक करती हैं और कुलीना स्त्रियाँ भी जिसको पीने के बाद उद्धत-चचंल मनवाली हो जाती हैं और काम परिपूर्ण अपने अगों के प्रदर्शन से मुनियों के चित्त को भी विचलित कर देती __ 118
SR No.009377
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 02 Bimariyo ko Thik Karne ke Aayurvedik Nuskhe 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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