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________________ अर्थ : कन्दू-छिद्र वाले लोहे के पात्र को उलट कर रखने को कन्दू कहते हैं। अंगार - शब्द से अंगार से भरे हुए पात्र वोरसी लिया जाता है। इस प्रकार से आग में पकाया हुआ आहार द्रव्य उतरोतर हल्का होता है । अर्थात् कुकूलक से हल्का कर्पर, कर्पर से हल्का कन्दू और कन्दू से हल्का अंगार में पकाये रोटी आदि खाद्य पदार्थ होते हैं। एक योनि से एक ही द्रव्य जैसे गेहूँ, यव (जौ), मूंग, चना आदि लिए जाते हैं। यदि गेहूँ से ही बनी रोटी इन चार पाचन विधियों से पकाया जाय तो क्रमशः उतरोतर खघु होते है । यहाँ पूप शब्द से “द्रवस्विन्नपिष्टान्नकृतः पूपः, विपरीतपूपो अपूपः " यह पूप और अपूप में भेद किया गया है। अथ भाकवर्ग । शाकं पाठाशटीसूषासुनिषणसतीनजम् । त्रिदोषघ्नं लघु ग्राहि सराजक्षववास्तुकम् । । सुनिषणोऽग्निकृद्वृष्यस्तेषु राजक्षवः परम् । ग्रहण्यर्शोविकारघ्नं वर्चो भेदि तु वास्तुकम् ।। अर्थ : पाठा, शटी, (कचूर) सूषा, (कासमर्द), सुनिषण्ण (चौपतिया) सतीनज (विष्णुकांता ) राजक्षव (दूधि, लौकी) और वास्तुक (बथुआ) ये साग त्रिदोष शामक लघु और ग्राही होते हैं। विशेष कर चौपतिया का साग अग्निकारक और वृष्य अर्थात् शुक्र बढ़ाने वाला होता है। तथा दूधिया ग्रहणी अर्श रोग को दूर करने वाला होता है और बथुओ का साग मल का भेदन करने वाला होता है। हन्ति दोषत्रयं कुष्ठं वृष्या सोष्णा रसायनी । काकमाची सरा स्वर्या - चागंर्यम्लाऽग्निदीपनो ।। ग्रहण्यर्शोऽनिलश्लेष्महितोणा ग्राहिरगो लघुः । अर्थ : काकभाची (मकोय) का शाक त्रिदोष और कुष्ठ रोग शामक वृष्य (शुक्रवर्धक) कुछ, उष्ण रसायनी सारक और स्वर के लिए अर्थात् स्वर भेद रोग को दूर करने वाली होती है। चांगेरी (छोटी चौपतिया) यह रस में अम्ल अग्नि दीपक, ग्रहणी, अर्श, वात, कफ, दोषों के लिए लाभकर और वीर्य में उष्ण ग्राही एवं लघु होती है । पटोलसप्तलारिष्टशागंष्टावल्गुजाऽमृताः । । वेत्राग्रबृहतीवासाकुंतलीतिलर्पाणकाः । मण्डूकपर्णो कर्कोटकारवेल्लकपर्पटाः । नाडीकलायगोजिह्वावार्ताकं वनतिक्तकम् । करीरं कुलकं नन्दी कुचेला शकुलादनी । । 97
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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