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________________ ... धाना यह विस्टम्म करने वाला रूक्ष, तृप्तिकारक, लेखन और गुरू होता है। विश्लेषण : ऊपर पानक का वर्णन किया गया है। और पानक का गुण द्रव्य के अनुसार होना बताया है। यद्यपि धान का लावा सूखा भी खाया जाता है, फिर भी इससे बनाया हुआ पानक का प्रयोग विशेष लाभकर होता है। चिवड़ा या चूड़ा-यद्यपि यह हरेधान से और पके हुए धान को उबालकर बिना उबाले हुए जल में भिगोकर मूसल से कूट कर बनाया जाता है। किन्तु हरेधान से बनाया हुआ चूढ़ा उपरोक्त गुणों से युक्त होती है। धाना-यव को बालू में पूंजकर बनाया जाता है। जिसे धाना (भूजा) कहा जाता है। यव लघु होता है इसलिए कुछ लोग यव से बने हुए भूजा को ही धाना कहते हैं पर किसी भी यव, चना, मटर आदि को वालू में भूजने पर उसे धाना कहते है। कुछ लोग कच्चे यव (जौ) गेहूँ चना आदि को आग में भूजकर बनायें हुए होरहा को धाना कहते हैं। यह भी द्रव्य के अनुसार गुणकारक होता है। सक्तवो लघवः क्षुतृट्अमनेत्रायमद्रणान्।। ध्नन्ति सन्तर्पणाः पानात्सद्य एव बलप्रदाः। नोदकान्तरितान्न द्विर्न निशायां न केवलान् ।। न भुक्त्वा न द्विजैश्छित्वा सक्तूनद्यान्न वा बहून् । अर्थ : सत्तू का गुण और सेवन विधि-सतू गुण में लघु, भूख, प्यास, श्रम, नेत्र के रोग और व्रणों को दूर करता है। यह शरीर को तृप्त करने वाला और जल में घोलकर पीने से तत्काल बल देने वाला होता है। सत्तू खाने का नियम-सत्तू खाते समय बीच-बीच में जल नहीं पीना चाहिए। सत्तू खाते समय दो बार नहीं लेना चाहिए। रात में सत्तू नहीं खाना चाहिए, केवल सत्तू मात्र का सेवन नहीं करना चाहिए। रोटी, भात आदि खाने के बाद सत्तू नहीं खाना चाहिए। सत्तू की पिण्डी बनाकर दाँतों से काटकर नहीं खाना चाहिए और सत्तू अधिक मात्रा में भी नहीं खाना चाहिए। विश्लेषण : सत्तू खाने के नियमों का निर्देश यहाँ किया गया है, सत्तू से यव (जौ) का सत्तू का ही ग्रहण होता है। इसे दो बार नहीं खाना चाहिए। जो यह सत्तू का सेवन विधि बताया गया है इन नियमों का पान न करने पर लाभकर नहीं होता है। सत्तू का तर्पण और वलप्रद बताया गया है किन्तु यह रूक्ष और बात वर्द्धक होता है। जो रूक्ष होगा वह वात को अवश्य ही बढ़ायेगा तो तर्पण और वलप्रदर कैसे हो सकता है? इस शंका पर ग्रन्थकारों ने प्रभाव से तर्पण और बलप्रद माना है जिस प्रकार वाजीकर औषधियां अपने प्रभाव से सद्य पुष्टिकारक होती है। उसी प्रकार सतू अपने प्रभाव से सद्यबलकारक 95
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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