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और दही एक साथ खाने से ज्वर एवं प्रतिश्याय को उत्पन्न करता है।
मान-मान का तात्पर्य तौल से है। लघु द्रव्य अधिक मात्रा में सेवन करने पर भी आकाश, वायु अग्नि गुण युक्त होने से अग्नि संघुक्षण करने वाले होते है। अतः आहार द्रव्यों का पाचन शीघ्र हो जाता है। इसी प्रकार पृथ्वी जल प्रधान गुरू द्रव्य जो अग्नि को मन्द करने वाले होते हैं वह द्रव्य भी यदि मात्रा में लिये जाते हैं तो उसका पाचन भी शीघ्र हो जाता है इस प्रकार इस कृतान्न वर्ग में जो संस्कारित मण्ड, पेया, विलेपी, ओदन का गुण बताया है उसका द्रव्य क्रिया योग और मान के अनुसार प्रयोग करते हुये उनके गुणों की कल्पना की जाती है।
... बृंहणः प्रीणानो वृष्यश्वक्षुष्यो व्रणाहा रसः। . मौद्गस्तु पथ्यः संशुद्धव्रणकुण्ठाज्ञिरोगिणाम्।।
वातानुलोमी कौलत्थो गुल्मतूनीप्रतूनिजित्। अर्थ : मूंग के यूष (रस) का गुण-मूंग के दाल का यूष (रस) वमन विरेचन । से शुद्ध व्यक्तियों के लिए तथा व्रण से पीड़ित, कण्ठ एवं नेत्र रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए लाभकारी होता है।
कुलथी के यूष (रस) का गुण-कुलथी के दाल का यूष (रस) वात को अनुलोमन करने वाला गुल्म तूनी और प्रतूनी रोग को दूर करने वाला होता है। विश्लेषण : मुद्गयूष (रस) और कुलथी के यूष (रस) के सामान्य गुणों का यहां निर्देश किया गया है। किन्तु सभी का गुण एक सा होता है यह नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसी प्रकार शिम्बी धान्यों में मुद्ग लघु तर होता है और उसका प्रयोग स्वस्थ और रोगी व्यक्तियों के लिए होता है। उसका वर्णन किया गया है। कुलथी का यूष (रस) विशेषकर गुल्म, तूनी प्रतितुनी रोगों में होता है।
तूनी वह रोग है जिसमें मलमूत्र के स्थान दसे वेदना उठकर नीचे पैर तक जाती है। प्रतितूनी वह रोग है जिसमें मल-मूत्र के स्थान से वेदना पक्वाशय तक जाती है। इसमें वायु का अनुलोमन कुलथी के (रस) से होता है। संग्रह ग्रन्थों में अश्मरी रोग में कुलथी का प्रयोग विशेष लाभकर बताया गया है। और प्रत्यक्ष रूप में इससे लाभ होता है। सम्भवतः तूनी प्रतितूनी शब्द से अश्मरी (पथरी) रोग की वेदना ही इष्ट है। यदि यह न भी माना जाय तो वायु से विकृति से ही अश्मरी अपने-अपने स्थानों में दोषों का संचय कर उत्पन्न होती है। यदि कारणान्तर से अश्मरी (पथरी) निर्मित होती हो और वायु अनुलोभ हो तो वह निकल जाती है। उसे कही भी अवरूद्ध होने का अवसर नहीं मिलता है। यही कारण है कि वायु को अनुलोभ करने के कारण कुलथी, अश्मरी (पथरी), तूनी, प्रतितूनी और गुल्म रोग को दूर करती है।
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