________________
शष्टम् अध्याय
अन्न द्रव्यों का ज्ञान
-
- अथातोऽन्नस्वरूपविज्ञानीयमध्यायं व्याख्यास्यामः।
इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः।
अर्थ : अब द्रव द्रव्य की व्याख्या के बाद अन्न स्वरूप विज्ञानीय अध्याय व व्याख्या की जायेगी। विश्लेषण : इस अध्याय में अन्न द्रव्य का स्वरूप जैसे-अन्न द्रव्यों में स्थि रस, वीर्य, विपाक, प्रभाव, गुण और कर्म आदि की भी व्याख्या की जायेर्ग यद्यपि अन्न द्रव्य का प्रयोग यहाँ लिखना उचित था किन्तु द्रव्य शब्द : प्रयोग न कर स्वरूप शब्द से अन्न और रस, वीर्य आदि का ग्रहण तथा स्थाव जंगम आहार इन दोनों का स्वरूप यहां बताया जायेगा।
अन्न का तात्पर्य 'अद्यते यत् तत् अन्ने अदू भक्षणे धातुः अदादिः। इ प्रकार ठोस आहार द्रव्य सामान्यतः धान्य वर्ग ही लिया जाता है। शुकधा और शिम्बी धान्य भेद से दो प्रकार का धान्य होता है। उनका वर्णन और । धान्यों से निर्मित पेया-मण्ड आदि तथा अन्य शाकवर्ग, फलवर्ग, लवणव अन्य उपयोगी औषधियों का वर्णन किया गया है।
अथ शूकधान्यवर्गः। रक्तो महान् सकलमस्तूर्णकः शकुनाहृतः। सारमुखो दीर्घशूको रोधशूकः सुगन्धिकः ।। पुण्ड्रः पाण्डुः पुण्डरीकश्चः प्रमोदो गौरशालयः। काच्चनो महिष: शूको दूषकः कुसुमाण्डकः ।। जागंलो लोहवासाख्या कर्दमा शीतमोरूका : पतंगास्तपनीयाश्च ये चान्ये शालय शुभाः।। .... स्वादुपाकरसाः स्निग्धा वृष्या बद्धाल्पर्चस। ..
कषायानुरसाः पथ्या लघवो मूत्रला हिमा।।... अर्थ : शुकधान्यो में लाल चावल, महाशालि, कलमी, (जो धान्य उखाड़ पुनः लगाये जाते हैं), तूर्णक शकुनाहृत, सारमुख, दीर्घशूक, रोध्रशूक, सुग पुण्डू पाण्डु पुण्डरीक, प्रमोद, गौरशालि, काचन, महिष, शूक, दूषक, कुसुमाण
. 82