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________________ ईख का सेवन यदि दाँत से चूसकर किया जाय तो उतम होता है। किन्तु यन्त्र के द्वारा उसका रस निकाला जाय तो वह उतम नहीं होता किन्तु ईख की भलीभांति सफाई कर तत्काल निकाला हुआ रस गुणकर होता है। फिर भी यदि उसे कुछ समय तक रखने के बाद पिया जाय तो विदाही गुरू, और विष्टम्मी होता है। यदि बिना साफ किये हुये ईखा से रस निकाला जाय तो विशेष हानिकर होता है । पौण्ड्क आदि पाँच ईखों का वर्णन यहाँ किया गया है, पौण्ड्क ईख मोटे और किञित पीले वर्ण के अधिक लम्बे होते हैं । वासिक ईख वांस के समान अधिक गाठदार और पौण्ड्क से कुछ मोटे नीले वर्ण के होते है । शतपर्व में गांठे अधिक होती हैं और श्वेत वर्ण होते है । कान्तार ईख सामान्य मोटे और रस में कुछ कषैला होता है । नेपाल - यह पहाड़ी प्रदेश में पाया जाता है । किन्तु वर्तमान समय में यह कोई भी ईख प्राप्त नहीं है। वर्तमान में जो ईख मिलता है उसमें अलग-अलग गुणों का वर्णन सम्भव नहीं है किन्तु सभी प्रकार के ईख में लवण अनुरस रूप में पाया जाता है । फरिणतं गुर्वभिष्यन्दि चयकृन्मूत्रषोधनम् । नातिश्लेष्मकरो धौतः सृष्टमूत्रशकृदर् गुडः । प्रभूतकृमिमज्जासृङ्मेदोमांसकफोऽपरः ।। हृद्यः पुराण, पथ्यश्च, नवः श्लेष्माग्निसादकृत् । वृष्याः क्षीरणक्षताहिता रक्तपितानिलापहाः । मत्स्यण्डिकाखण्डसिताः क्रमेण गुणवतमाः । । तद्गुरगा तिक्तमधुरा कषाया यासशर्करा । दाहतृट्च्छदिमृच्छासृिपितघ्न्यः सर्वशर्करा । शर्करेक्षुविकाराएगां फारिगतं चवरावरे । अर्थ : ईख से बनी हुई विकृतियों का गुणः (1) फाणित ( राव ) यह गुरू अभिष्यन्दि, त्रिदोष प्रकोपक, और मूत्र का शोधन अर्थात् वस्ति की शुद्धि करते हुये स्वच्छ रूप मूत्र को निकालता है। में (2) धौत गुड़-सयंस्कार द्वारा रस के मल को दूर कर बनाया हुआ गुड़ अधिक मात्रा में कफ को नहीं बढ़ाता है अथति अल्पमात्रा में कफ कारक है। एवं मलमूत्र का निःसारक होता है। अधौत गुड़ साफ न कर बनाया हुआ गुड अधिक रूप में कृमि उत्पादक, मज्जा, रक्त, मेदा, मांस और कफ को बढ़ाने वाला होता है । (3) पुरानागुड़ - एक वर्ष के उपर का पुराना गुड़ हृदय के लिए हितकारी और पथ्य होता है। तथा नया गुड कफ का वर्धक और अग्नि को मन्द करने वाला होता है। 72
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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