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पीपर, एवं सोंचर नमक मिलाकर देने से विशेष लाभ होतो है। तक्र का निर्माण अनेक प्रकार से होता है जिसमें पूरे दधि को जल में घोल दिया जाता है। इसे घोल कहते है। 2-छाली अलग कर दधिमात्रा को पानी मिलाकर मथने को मथित कहते हैं। 3- केवल छाली को जल में मिलाकर मथकर घृत निकाल कर बचे हुए भाग को तक्र कहते है। 4-छाली में अधिक जल मिला कर मथने के बाद घी निकालने के बाद उसे छाछ कहते हैं। 5- छाली निकालकर दधि में अधिक जल देकर मथ कर पतला बनाने को । उदश्वित कहा जाता है।
इनमें घोल को छोड़कर चारों को तक्र शब्द से व्यवहार में लाया जाता है। किन्तु विशेष लाभकारी मलाई निकालकर थोड़े जल से मथा हुआ और घृत निकाला हुआ तक्र ही होता है। बार-बार मथने से और स्नेह निकल देने से दधि के सभी दुर्गुण दूर हो जाते हैं। गुण वर्तमान ही रहते हैं इस लिए यह अधिक लाभकर रहता है।।
तद्वन्मस्तु सरं सोतःशोधि विष्टम्भजिल्लघु। मस्तु-मस्तु उसे कहते है जो दधि से जल अलग होता है वह सारक, स्रोतों का शोधक, विष्टम्भ को दूर करने वाला और लघु होता है एवं तक्र में जो गुण वर्तमान है वे सभी गुण दधि के जल में वर्तमान होते है।
नवनीतं नवँ वृष्यं शीतं वर्णबलाग्निकृत् । सङ्ग्राहि वातपित्तसृक्क्षयार्थोऽदितकासजित।
क्षीरोद्भवं तुं सग्राहि रक्तपिताक्षिरोगजित्। अर्थ : नवनीत का (मक्खन)-गुण-नया निकाला हुआ मक्खन शुक्र वर्धक शीतल, वर्ण्य, बल और अग्नि को बढ़ाने वाला होता है यह ग्राही, वात, पित्त, रक्त, क्षय, अर्श, अर्दित और कास रोग को दूर करने वाला होता है। तथा नेत्र रोगों में लाभकारी तथा नेत्र के बल को बढ़ाने वाला होता है। वृद्ध (क्षीण) व्यक्तियों के लिए पथ्य एवं निरन्तर मक्खन सेवा से शरीर में कोमलता आती है। दूध से निकाला हुआ . मक्खन ग्राही, रक्तपित्त तथा नेत्र रोगों को दूर करने वाला होता है। विश्लेषण : मक्खन, दूध एवं दधि दौनों से निकाला जाता है पर व्यवहार में दूध का ही मक्खन लिया जाता है, दही से बनाये हुए का नाम लैनू है। नवनीत का अपभ्रंश लैनू ही हो सकता है। दही से निकाला गया या दूध से निकाला गया, दोनों अधिक शीत वीर्य होता है, यह वात रक्त, रक्तपित एवं रायक्ष्मा रोग को दूर करता है 'अर्दित रोग में यह शुक्र वर्धक एवं स्निग्ध होने से सूखे हुए
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