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________________ विचित्रपुष्पवृक्षेषु काननेषु सुगन्धिषु । गोष्ठीकथाभिश्चित्राभिर्मध्याह्नं गयमेत्सुखी । गुरूशीत दिवास्वप्नस्निग्धाम्लमधुरांस्त्यजेत् ।। अर्थ : मध्याहृ में विश्राम स्थान - 1 -जिस स्थान पर दक्षिण वायु के लगने से शीतलता आ गयी हो चारों तरफ फुहारे का जल अथवा चारों तरफ झरने का जल गिर रहा हो, सघन लता इत्यादि से न दिखायी पड़ने के कारण सूर्य नष्ट प्रतीत होते हो, मणि, रत्न, आदि जिस चबूतरे आदि में जड़े हुये हों, कोयल का शब्द सुनाई पड़ता हो मैथुन करने की सभी सामग्रियां उपलब्ध हों रंग विरग के पुष्प और वृक्षों के सुगन्ध से सुगन्धित वन या वाटिका हो ऐसे स्थान पर अनेक प्रकार की कथा, वार्ता करते हुए मित्र मण्डली के साथ सुख पूर्वक मध्याह का समय बीतायें । वसन्त ऋतु में त्याज्य - इस काल में गुरू ( गरिष्ठ) और शीतल आहार, दिन में शयन, स्निग्ध एवं अम्ल और मधुर रसों का सेवन न करें। विश्लेषण : शिशिर में संचित कफ वसन्त में कुपित होकर अग्नि मन्द कर देता है । इस लिये शिशिर की अपेक्षा हल्का भोजन करना चाहिये । व्यायाम का सेवन जैसा कि - बसन्ते भ्रमणं पथ्यं, बताया है। प्रातःकाल भ्रमण और व्यायाम का सेवन आवश्यक होता है। प्रातःकाल धूम्रपान और उष्ण जल में नमक मिलाकर बार बार कुल्ला करना चाहिये । यदि कफ की अधिकता प्रतीत हो तो सेधा नमक गर्म जल में मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे वमन होकर कफ निकल जाता है। भोजन में जो, गेहूं अरहर, आदि अन्न पुराना लेवें। और मधु का सेवन अधिक रूप में करे । इस ऋतु में सूर्यसन्ताप के बढ़ने से गर्मी लगने का भय अधिक रहता है इसलिये कच्चे आम को आग में भूज कर पीस कर पुदीना, चीनी, काला नमक मिलाकर दिन में एक दो बार लेना चाहिये, विशेष कर हरे - भरे बाग बगीचों में रहने का प्रयास करना चाहिये । तीक्ष्णांशुरतितीक्ष्रगांशुग्रष्मे संक्षिपतौव यत् । प्रत्यहं क्षीयते श्लेष्मा तेन वायुश्च वर्धते । अतोऽस्मिन्पटु कट्वम्लव्यायामार्क करांस्त्यजेत् । भजेन्मधुरमेवान्नं लघु स्निग्धं हिमं द्रवम् सुशीततोयसिक्तागौ लिह्यात्सक्तून् सशर्करान् ।। मद्यं न पेयं, पेयं वा स्वल्पं, सुबहुवारि वा । अन्यथा शोषशैथिल्यदाहमोहान् करोति तत् । । 32
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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