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________________ अर्थ : हेमन्त काल में रात्रि के बढ़े होने से प्रातःकाल में ही भूख क्षुधा अष्टि क लग जाती है, अतः आवश्यक मल, मूत्रादि का त्याग कर इस ऋतु में वातनाशक तैलों का मस्तक के ऊपर अभ्यड (तेल मालिश) और शरीर में तेल का मालिश कुशल शिक्षित व्यक्तियों के साथ कुस्ती लड़ना और पादाघात अर्थात पैर से युक्ति पूर्वक मर्दन कराना चाहिए। कषायापहृतस्नेहस्ततः स्नातो यथाविधि। कुङ्कुमेन सदर्पण प्रदिग्धोऽगुरूधूपितः।। अर्थ : इसके बाद कशाय रस प्रधान आमला, चने का बेसन आदि द्रव्यों का सिर पर मालिश कर तेल की स्निधता को दूर कर विधि पूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद केशर कस्तूरी को शरीर में लगाकर अगर के धूआँ से अपने शरीर को धूपित करना चाहिए। रसान स्निग्धान पलं पुष्टं गौडझमच्छसुरां सुराम् ।। . गोधूमपिष्टमाषेक्षुक्षीरोत्थविकृतीः शुभाः।। नवमन्नं वसां तैलं, शौचकार्ये सुखोदकम् । अर्थ : स्निग्ध रसों से युक्त भोजन पदार्थ गुड़ से बने हुए पदार्थ, मालपुआ आदि गोधूम, (गेहूँ) का आटा, उड़द से बने बड़ा, ईख का रस या गन्ने से बने पदार्थ चीनी, गुड़, दूध की मलाई, रबड़ी, नूतन अन्न और तैल का सेवन करना चाहिए। मलत्याग करते समय उष्ण जल का प्रयोग करना चाहिए। प्रावराजिनकौशेयप्रवेणीकोचवास्तृतम्। उष्णस्वभावैर्लधुमिः प्रावृतः शयनं भजेत्। युक्त्याऽर्ककिरणान् स्वेदं पादत्राणं च सर्वदा।। अर्थ : वस्त्र-इस काल में प्रावार-कम्बल अथवा सूती वस्त्र से बने हुए मोटो वस्त्र या रजाई, अजिन-मृगचर्म, कौशेय, कोशा-रेशम का वस्त्र । प्रवेणी-कथरी जो तागे से अधिक सीबन किया गया हो, कौचव-रंगीन कम्बल इन उष्ण स्वभाव वाले हल्के वस्त्रों को बिछाना और ओढ़ना चाहिए। इस काल में शयन करने के स्थान को परदे आदि से घिरा हुआ रहना चाहिए या गृह के भीतर दरवाजे बन्द कर शयन करना चाहिए। सूर्य का किरण अर्थात् धूप का सवेन युक्तिपूर्वक अर्थात् थोड़े समय तक पीठ के ऊपर धूप लगाना चाहिए, स्वेद अर्थात् अग्नि तापना, जूता, खराऊँ का धारण सर्वदा करना चाहिए। 29
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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