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ऋतु में, मकर एवं कुम्भ को शिशिर ऋतु में, मीन एवं मेष को बसन्त ऋतु में माना गया है। विद्वानों की इस बारे में थोड़ी मत भिन्नता होने के कारण संक्रान्ति काल को ही ऋतु का ध्रुव बनाना न्यायसंगत है।
__ संक्रान्ति सूर्य की गति पर निर्भर होती है। जब फाल्गुन माह के शुरू में मीन संक्रान्ति है, तब फाल्गुन-चैत्र को बसन्त ऋतु माना जाता है। जब फाल्गुन के अन्त में मीन संक्रान्ति होती है तो चैत्र-वैशाख को बसन्त ऋतु माना जाता है। इस प्रकार वृष-मिथुन को ग्रीष्म, कर्क-सिंह को वर्षा, कन्या-तुला को शरद, वृश्चिक-धनु को हेमन्त, मकर-कुम्भ को शिशिर माना जात है। जब फाल्गुन में मीन संक्रान्ति होती है तो फाल्गुन-चैत्र को बसन्त, वैशाख-ज्येष्ठ को ग्रीष्म, आषाढ़-सावन को प्रावट, भादों-क्वार को वर्षा, कार्तिक-अगहन को शरद, पूष-माघ को हेमन्त ऋतु माना जाता है।
काश्यप संहिता के अनुसार गंगा के दक्षिण भाग में जल की वर्षा अधिक होती है। अतः दक्षिण भारत में प्रावृट् और वर्षा दो ऋतुयें होती हैं। हिमालय पर्वत क्षेत्र में शीत (ठण्ड) अधिक होता है। इसलिये हेमन्त और शिशिर दो ऋतुयें होती हैं। आयुर्वेद में यह सिद्धान्त है कि दोष का संचय जिस ऋतु में होता है, उससे अगली ऋतु में उसका प्रकोप होता है। तथा उससे आगे की ऋतु में उसका प्राशय होता है। यदि शिशिर ऋतु को लेकर 'ऋतु माना जाय तो हेमन्त में संचित कफ को शिशिर में कुपित होना चाहिए। पर यह प्रत्यक्ष में दिखायी देता है कि कफ का प्रकोप बसन्त में ही होता है। इस पक्ष में शिशिर में किसी भी दोष का संचय एवं प्रकोप नहीं होता है। इसलिये आयुर्वेद के विद्वानों ने प्रावृट् ऋतु को लेकर 6 ऋतुओं को माना है। उसके अनुसार ग्रीष्म में वात का संचय, प्रावृट में प्रकोप और वर्षा में उपशम, पित्त का वर्षा में संचय शरद में प्रकोप, हेमन्त में उपशम, कफ का हेमन्त में संचय, बसंत में प्रकोप एवं ग्रीष्म में उपशम होना माना जाता है। जिस पक्ष में शिशिर, बसन्त ऋतुओं का जो वर्णन किया गया है, वह संक्रान्ति के अनुसार किया गया है। कुछ विद्वान गर्मी, सर्दी, वर्षा तीन ही ऋतु को मानते हैं। आयुर्वेद में दोष संचय के अनुसार 6 ऋतुयें मानी जाती है।
शिशिराद्यास्त्रिभिस्तैस्तु विद्यादयनमुत्तरम्।
आदानं च तदादत्ते नृणां प्रतिदिनं बलम्।। अर्थ : शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन तीनों ऋतुओं को उत्तरायण भी कहा जाता है। यह उत्तरायण मनुष्यों के बल को ले लेता है इसलिये इसे आदान काल कहते हैं।
तस्मिन् हत्त्यर्थतीक्ष्णोण्णरूक्षा मार्गस्वभावतः आदित्यपवनाः सौम्यान् क्षपयन्ति गुणान भुवः
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