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होता है, क्योकि तेल सूक्ष्म होने से त्वचा के छिद्रों से प्रवेश करके अन्दर चला जाता है। अतः गर्म होने से यह तेल विकृत कफ को दूर करता है। कान जो है वे वायु (वात) का विशेष स्थान है। यदि कानों में नियमित रूप से तेल डाला जाय तो कानों के अन्दर की वायु समयोग में रहती है, अर्थात संतुलित रहती है। इससे कानों के रोग नहीं होते हैं। पैरों के द्वारा ही गमन की क्रिया होती है, अर्थात चलने-फिरने का काम होता है। गति से वायु का प्रकोप बढ़ता है। पैरों के द्वारा चलने-फिरने से पैरों में वायुका प्रकोप हो जाये तो वायु के रूक्ष होने के कारण पैरों की विवाई फट जाती है। इसका असर आँखों पर भी पड़ता है। पैरों के मूल से होकर 2 शिरायें आँखों तक जाती हैं। यदि पैरों में रूक्षता और गन्दगी रहे तो वह आँखों तक पहुँचती है। इसलिये पैरों की तेल मालिश और सफाई बहुत जरूरी है।
वोडयड़ग: कफग्रस्तकृतसंशृद्धयजाणिमिः। अर्थ : कफज रोगों से पीड़ित एवं अजीर्ण रोगों से पीड़ित रोगियों को तेल मालिश नहीं करनी चाहिए।
लाघवं कर्मसामर्थ्य दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः।
विभक्तघनगात्रत्वं ण्यायामादुपजायते।। अर्थ : व्यायाम करने से शरीर में लघुता, कार्य करने का सामर्थ्य, अग्नि की दीप्ति, बढ़ते हैं, और मेदावृद्धि का क्षय होता है। शरीर के सभी अंग मजबूत होते हैं। विश्लेषण : पसीना जब आती है, सांस में जब वृद्धि होती है, शरीर के अंगों में लघुता जब आता है, हृदय प्रदेश में बाधा उत्पन्न होती है, हृदय गति में तथा सांस की गति में वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी स्थिति को व्यायाम कहते हैं। व्यायाम अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे-दण्ड, कसरत, दौड़ना, तैरना, कुश्ती आदि। शरीर के विभिन्न अंगों में ताकत प्रदान करने के लिये भिन्न-भिन्न व्यायामों का निर्देश सभी शास्त्रों में किया गया है। शास्त्रों में , आसनों का विधान एवं सूर्य नमस्कार का विशेष विधान है।
वातपित्तामयी बालो वृद्धीऽजीर्णी च तं त्यजेत् अर्थ : वात और पित्त के विकारों से पीड़ित रोगी, बालक, वृद्ध और अजीर्ण के रोगियों को व्यायाम नहीं करना चाहिए। विश्लेषण : व्यायाम से वात एवं पित्त की स्वभावतः वृद्धि होती है। यदि किसी को वातजन्य या पित्त जन्य रोग हों तो व्यायाम करने से और अधिक बढ़ जायेंगे। बाल्य अवस्था में सभी धातुओं की वृद्धि के लिये कफ की जरूरत होती है। यदि कोई बालक व्यायाम करता है तो कफ में कमी आती है। इससे बालक के शरीर में धातुओं की कमी आ सकती है। इसलिये 10 वर्ष की आयु तक बालकों-बालिकाओं को व्यायाम नहीं करना चाहिए।
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