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शाकों में पूर्ण रूप से उसके रस न आ गये हों अर्थात अभी बाल्यवस्था में हों तो उसका सेवन नहीं करना चाहिए तथा जो शाक सूख गये हों उनका भी सेवन नहीं करना चाहिए किन्तु मूली का सूखा शाक खान योग्य होता है। इसी प्रकार उपर्युक्त दोषों से युक्त फलों का सेवन भी नहीं करना चाहिए किन्तु फलों में बेल कच्चा और सूखा लेने का विधान बताया गया है। विश्लेषण : पुराना धान्य शाक और फलों का सेवन निषेध किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि इनका सेवन शारीरिक बल शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है धान्य एक वर्ष के पुराने सेवन करने योग्य होते हैं किन्तु अधिक पुराने होने पर वह अपने वीर्य को छोड़ देते हैं। और अधिक लघु सुपाच्य होते है इसलिए रोगी व्यक्तियों के लिए जिनकी अग्नि मन्द हो जाती है उनके लिए लाभकर होता है स्वस्थ व्यक्ति यदि उनका सेवन करे तो शीघ्र ही उसका पाचन होकर मल बन जाता है उससे शक्ति का सम्पादन नहीं होता शाक सर्वथा पुराने होने पर दोष कारक होता है। किन्तु मुली का शाक सूखने पर भी खाया जाता है सभी फल पकने पर गुणदायी होते है। किन्तु बेल कच्चा और सूखा विशेष गुणकारी होता है बताया भी है
"फलेशु परिपक्वं यत् गुणवत् तदुदाहृतं" यह निषेध वचन प्रायीवाद है। क्योंकि विभिन्न शाक को इन दोषों से दूषित होने पर भी लिया जाता है जैसे कमल नाल, करेमू का साग यह जल में डूबे रहते हैं गूलर का फल उसमें कृमियाँ होती है और उनका सेवन किया जाता है।
अथलवरणवर्ग: विष्यन्दि लवणं सर्व सूक्ष्मं सृष्टमलं मृदु।।
वातघ्नं पाकि तीक्ष्णोष्णं रोचनं कफपित्तनुत्। अर्थ : सभी प्रकार के नमक विष्यन्दी सूक्ष्म, मूत्र पुरीष निःसारक, वात नाशक, अन्न औ व्रण आदि को पकाने वाला, तीक्ष्णं, उष्ण, वीर्य होते है तथा भोजन में रूचिकारक और कफ एवं पित्त को दूर करता है।
सैन्धवं तत्र सुस्वादु वृष्यं हृद्यं त्रिदोषनुत्।।
लध्वनुष्णं दृशः पथ्यमविदाह्यग्निदीपनम् । लघु सौवर्चलं हृद्यं सुगन्ध्युद्गारशोधनम्।। कटुपाकं विबन्धनं दीपनीयं रूचिप्रदम् । ऊर्ध्वाधःकफवातानुलोमनं दीपनं बिडम्।।
विबन्धानाहविष्टम्भशूलगौरवनाशनन् । विपाके स्वादु सामुद्रं गुरू श्लेष्मविवर्धनम्।।
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