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________________ - चरक ने भल्लातक को उत्तम रसायन माना है विशेषकर कफज सभी रोगों में इसका प्रयोग सर्वोत्तम माना है यथा कफजो न. स रोगोऽस्तिः न विवन्धोऽस्ति कश्चन। यं न भल्लेतकं हन्यात् शीघं मेंधाग्निवर्धनः।। स्दाद्वम्ल शीतमुष्णंच द्विधा पालेवतं गुरू। रूच्यमत्यग्निशमनम्च्यं मधुरमारूकम्।। पक्वमाशु जरां याति नात्युणगुरूदोषलम्। अर्थ : पालवत (हरपरौरी या हरफारबड़ी) का गुण-पालवत दो प्रकार का होता है। 1-मधुर एवं शीतल 2-अम्ल एवं उष्ण। दोनों पालेवत गुरू: रूचिवर्धक तीक्ष्णाग्नि (भस्मक रोग) को शान्त करने वाला होता है। आरूक (आडू) का गुण-यह भोजन में रूचि उत्पन्न करने वाला और रस में मधुर होता है। __ पालिवत और आडू यह दोनों का फल पक जाता है तो इसका पाक शीघ्र ही हो जाता है। यह अधिक उष्ण वीर्य नहीं होता है पर गुरू और वातादि दोष को बढ़ाने वाला होता है। विश्लेषण : पालिवत एवं आरूक को व्यवहार में हर परौरी और आडू कहते हैं यह दोनों मधुर एवं अम्ल दो प्रकार के होते हैं। मधुर जो होता हैं यह दोनों मधुर एवं अम्ल दो प्रकार के होते हैं। मधुर जो होता है वह शीतल एवं गुरू होता है इसलिए भस्मक रोग में बढ़े हुए जठराग्नि को शान्त करता है और जो अम्ल, उष्ण होता है उसका प्रभाव भस्मक रोग में नहीं होता है। कच्चे फल को पीसकर चटनी बनाकर खाया जाता है, पका हुआ फल किचिंत गरम होता है और उसका पाचन बहुत शीघ्र होता है तथा वातादि दोषों को बढ़ाता है इस लिए कच्चे फल अधिक गुणकारी और पके फल दोषवर्धक होते हैं। द्राक्षापरूषकं चामम्लं पित्तकफप्रदम् । . गुरूष्णवीर्य वातघ्नं सरं च करमर्दकम् । तथाऽम्लं कोलकर्कन्धुलकुचाभ्रातकारूकम्। - ऐरावतं दन्तशठं सतूदं मृगलिण्उिकम्। नातिपित्तकरं पक्वं शुष्कं च करमर्दकम् ।। दीपनं भेदनं शुष्कमम्लोकाकोलयोः फलम् । तुष्णाश्रमक्लमच्छेदि लध्विष्टं कफवातयों:। फलानामवरं तत्र लकुचं सर्वदोषकृत् ।। अर्थ : द्राक्षा (मुनक्का) परूषक (फालसा) करमर्दक (करौंदी) ये तीनों फल यदि 118
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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