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फल) फल्गु (गुलर का फल) श्लेष्मातक (लिसोरा का फल) बादाम, अभिषुक (पिस्ता) अखरोट, मुकुलक चिरगोजा, निकोचक, उरूमाड़ (खुरमानी) और चिरौंजी ये सभी फल वृंहण, गुरू शीतल, दाह उरक्षत, क्षयरोग की दूर करते है तथा रक्त और पित्त को स्वच्छ, करते है रस और विपाक में मधुर स्निग्ध विष्टम्भि और कफ और शुक्र को उत्पन्न करते है। विश्लेषण : यहाँ इन फलों का सामान्य गुण एकत्र लिखा गया पर अन्यत्र भिन्न-भिन्न गुण जैसे सुश्रुत ने महुए के फूल का गुण वृंहण अहद्य, गुरू बताते हुए फल को वात पित्त शामक बताया है। सौवीर और वदर यहाँ वेर के दो ही भेद का उल्लेख है किन्तु वेर कि पाँच जातिया सुश्रुत ने बताया
कर्कन्धु बदरं कोल सौवीरं सीचातिफल्म।
यथोत्तरं महत्स्वादू पंचधा वदरी फलम्।। पुरातनं तृट् शमनं श्रमघ्नं दीपनं लघु। यहाँ सौवीर के समान यह बदर का उल्लेख किया गया है। कोल और कर्कन्धुस्वादु न होकर अम्ल होता है। सिंचिका फल तिक्त होने के कारण यहां उसका उल्लेख नहीं किया गया है। इसका समाधान इस प्रकार किया जा सकता है कि सुश्रुत ने भी आगे सौवीर वदर स्निग्ध मधुरं वातषितजित् सौवीर और वदर को समान गुण बताया हैं, कच्चे, पके और पुराने कर्कन्धु कोल, और वदर का गुण ऊपर बताकर समान गुण निर्देश दुसरे वाक्य से किया है, सौवीर और वदर में द्वन्द्व समास कर एक वचन का प्रयोग किया गया है। सौवीर यह वदर का विशेषण मानना ठीक नहीं है क्योंकि सौवीर का अलग पाठ है।
फलं तु पित्तलं तालं सरं काश्मर्यजं हिमम्। शकन्मूत्रबिबन्धघ्नं केश्यं मेध्यं रसायनम्। वातामाधुष्णवीर्य तु कफपित्तकरं सरम् ।
पर वातहर स्निग्धम्
अनुष्णं तु प्रियालजम्। .. प्रियालमज्जा मधुरो वृष्यः पित्तानिलापहः।।
कोलमज्जा गुणैस्तद्वत्तृछर्दिःकासजिच्च सः। अर्थ : ताल आदि फलों का गुण-ताल अर्थात ताड़ का फल पित्त को उत्पन्न करता है। .. गम्भार के फल का गुण-गम्भार का फल-वीर्य में शीतल मल और मूत्र का विबन्ध दूर करता है, केश के लिए हितकर (क्रिमिघ्न), मेधा वर्द्धक और रसायन है। बादाम का गुण-यह वीर्य में उष्ण कफ और पित्त वर्धक तथा सारक होता है। यह परं वात हर और स्निग्ध होता है।
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