SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हूँ। मेरा अज्ञान, अविवेक और मिथ्या आचरण है। स्वस्थ रहना मेरा मौलिक आधार है। निरन्तर ऐसा संकल्प करने से मनोबल, आत्मबल बढ़ेगा तथा हम स्वस्थ हो. सकेंगे। दुःख देने से दु:ख मिलता है. . संसार में दो तत्त्व मुख्य है। प्रथम जीव, चेतना अथवा आत्मा। दूसरा, अजीव, निर्जीव, जड़ या अचेतन। इन दो, तत्वों से ही सम्पूर्ण ब्रह्यमाण्ड की संरचना होती है। वर्तमान भौतिक विज्ञान ने जितनी भी खोज की है, उसका आधार है - जड़ जगत । चेतना के स्तर पर अभी तक प्रयोगशालाओं अथवा कारखानों में जीवन के लिए अत्याधिक आवश्यक कोशिकाओं तक का निर्माण सम्भव नहीं हुआ है। परन्तु अज्ञान और अविवेकपूर्ण मिथ्या दृष्टिकोण के फलस्वरूप अन्य चेतनाशील प्राणियों - के प्रति आज के स्वार्थी मानव का आचारण करूणामय नहीं है। जो प्राण हम दे नहीं सकते, उसको लेने का हमें क्या आधिकार? जो बना नहीं सकते उसको नष्ट करना कैसे न्यायसंगत कहा जा सकता है? रोग एक दुःख है, पीड़ा है। वह हमारे शरीर में क्यों उत्पन्न होता है? प्रकृति का सनातन सिद्धान्त है -- दुःख देने से दु:ख मिलता है। जैसा बोएँगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। अतः शान्त, सुखी, रोगमुक्त, दीर्घ जीवन जीने के लिए अहिंसक आचरण आवश्यक है। ... अहिंसा का आधार है -- आत्मा। जब तक जीव-अजीव का ज्ञान नहीं होगा, तब तक हिंसा से बचना कठिन होगा। जो हलन-चलन वाले जीव हमें दिखाई देते हैं, प्राय: हम उन्हीं को जीव मानते हैं। बहुत से ऐसे सूक्ष्म जीव होते हैं, जिन्हें हम अपने चर्म चक्षुओं से नहीं देख सकते और न सभी सूक्ष्म जीवों को उपलब्ध वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा भी देखना सम्भव होता है। आज वैज्ञानिकों द्वारा भी वनस्पति में चेतना को स्वीकार किया जा चुका है। कैप्टन स्कोर्सबी ने पानी की एक बूंद में सूक्ष्म दर्शक यंत्र द्वारा 364500 चलते-फिरते जीवों को देखा, जिसका विवरण सिद्ध पदार्थ नामक ग्रन्थ (जो इलाहाबाद प्रेस से प्रकाशित हुआ है) में मिलता है। तथा पानी में जीव की सत्यता को स्पष्ट करता है। अग्नि की सजीवता तो स्वयं सिद्ध है। उसमें प्रकाश और उष्णता का गुण है। जो सचेतन में होते हैं। अग्नि वायु के बिना जीवित नहीं रह सकती। लकड़ी, ईंधन, पेट्रोल, केरोसिन आदि आहार लेकर . बढ़ती है। आहार के अभाव में अग्नि घटती है। ये सभी. उसकी सजीवता के लक्षण हैं। केवल ज्ञानी, सर्वज्ञ, वीतरागी, त्रिकाल द्रष्टा ही सूक्ष्म से सूक्ष्मतम जीवों को देख , सकते हैं। उन्होंने बिना किसी यंत्र की जो जैन आगमों में विस्तार से चर्चित है। उन्होंने वायु और पृथ्वी में भी जीव की उपस्थिति का वर्णन किया, जिसका प्रभाव हम भूकम्प, आँधी, तूफान के समय अनुभव कर सकते हैं, जो विज्ञान के लिए शोध का विषय है। आज उनका अत्यधिक दोहन, दुरूपयोग ही पर्यावरण और पदूषण 64
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy