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________________ अच्छी चिकित्सा पद्धति के मापदण्ड अच्छी चिकित्सा पद्धति शरीर को आरोग्य ही नहीं, निरोग रखती है। अर्थात् इससे शरीर में रोग उत्पन्न ही ही होता। रोग होने का कारण आधि (मानसिक रोग), व्याधि (शारीरिक रोग), उपाधि (कर्मजन्य) के विकार होते हैं। अतः अच्छी चिकित्सा तीनों प्रकार के विकारों को समाप्त कर समाधि दिलाने वाली होती है। अच्छी चिकित्सा पद्धति के लिए आवश्यक है -- रोग के मूल कारणों का सही निदान, स्थायी एवं प्रभावशाली उपचार। इसके साथ-साथ जिस पद्धति में रोग का प्रारम्भिक अवस्था में ही निदान हो सके तथा जो रोगों को रोकने में सक्षम हो। जो पद्धति सहज हो, सरल हो, सस्ती हो, स्वावलम्बी हो, दुष्प्रभावों से रहित हो, पूर्ण अहिंसक हो तथा जिसमें रोगों की पुनरावृत्ति न हो। जो चिकित्सा शरीर को स्वस्थ करने के साथ-साथ मनोबल और आत्मबल बढ़ाती हो तथा जो सभी के लिए, सभी स्थानों पर सभी समय उपलब्ध हो। अच्दी चिकित्सा पद्धति के तो प्रमुख मापदण्ड यही होते हैं। जो चिकित्सा पद्धतियाँ इन मूल सनातन सिद्धान्तों की जितनी ज्यादा पालन करती है, वे उतनी ही अच्छी चिकित्सा पद्धतियाँ होती है। अच्दी चिकित्सा का मापदण्ड भीड़ अथवा विज्ञापन नहीं होता अपितु अन्तिम परिणाम होता है। मात्र रोग में राहत ही नहीं, स्थायी उपचार होता है। दवाओं की दासता से मुक्ति होती. है। अतः जो रोगी उपचार से पूर्व निदान और उपचार की सत्यता पर अपनी शंकाऔं का चिकित्सक से सन्तोषजनक समाधान प्राप्त करने के पश्चात् उपचार कर पाता है, वह शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाता है। ... .. युवा चिकित्सक एक रोगं की पचास दवाएँ रखता है। चिकित्सक पचास रोगों की एक दवा और महान् चिकित्सक किसी भी रोग की कोई दवा नहीं रखता। हम स्वयं निर्णय करें, कौन सा उपचार अच्छा है? उपचार करते समय रोगी से तालमेल आवश्यक ... अच्छे चिकित्सक का कार्य रोगी को जाग्रत करने का प्रयास होता है। उसका मनोबल, आत्मबल और सद्विवेक जाग्रत कर रोगी को उसकी क्षमताओं से परिचय कराने का होता है। सभी रोगी एक जैसे नहीं होते और न सभी रोगी अच्छे से अच्छे डाक्टर से ठीक भी होते हैं। जिसके अन्दर का तत्त्व जितना-जितना जाग्रत होगा, उतना-उतना उस पर प्रभाव पड़ेगा | अतः चिकित्सक को, रोगी को रोग से साक्षात्कार कराना होंगा। रोग के मूल कारणों को समझ उनसे बचने हेतु प्रेरित करना होगा। रोगी से तालमेल (Tunning) करनी होगी। रोग का प्रभाव पहले मस्तिष्क में होता है एवं उसके पश्चात् उसकी अभिव्यक्ति होती हैं। प्रायः हम देखते हैं, जब कोई नुकसान होता है तो मस्तिष्क उस हानि का आकलन करता है। तत्पश्चात् उसके अनुरूप प्रायः व्यक्ति को दुःख होता है, अथवा क्रोध आता है। इसी .. - 51
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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