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________________ समझने में विज्ञान को काफी सफलता मिली है। प्रयोगशालाओं में रक्त, मल, मूत्र, • वीर्य, मांस, मज्जा आदि शरीर के अवयवों का परीक्षण कर उसमें आवश्यक तत्त्वों के असन्तुलन को समझ शारीरिक रोगों के निदान को तर्कसंगत बना दिया है तथा उसके अनुरूप बाहय साधनों से उनका सन्तुलन कर शीघ्र पहुँचाने में उत्साहजनक प्रगति की है। छुआछूत रोगों के नियंत्रण, महामारियों की रोकथाम, दुर्घटना जैसी परिस्थितियों में अभी तक अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ इतनी अधिक तुरन्त राहत पहुँचाने में सक्षम नजर नहीं आतीं, जितनी आधुनिक चिकित्सा के परिणाम है। आधुनिक चिकित्सकों को शरीर के प्रत्येक अंग, उपांग, अवयवों के क्रियाकलापों की जितनी विस्तृत भौतिक जानकारी होती है, उतनी प्रायः वैकल्पिक चिकित्सकों को नहीं होती । • वैकल्पिक चिकित्सक को भले ही शरीर के प्रत्येक अंगों अथवा अवयवों की सूक्ष्म जानकारी न भी हो, फिर भी अधिकांश स्वावलम्बी अहिंसात्मक चिकित्सा पद्धतियाँ आत्मिक अनुभूतियों की उपेक्षा नहीं करती। रोग का कारण रोगी की अप्राकृतिक जीवन शैली में ही ढूँढ़ उपचार करती है । शरीर के विभिन्न अंगों का गहनतम शोध करना गलत नहीं, उसका बहुत महत्त्व है। उपयोगिता और आवश्यकता है, परन्तु उससे भी ज्यादा जरूरी और प्राथमिक मन और आत्मा की शक्तियों की उपेक्षा कहाँ तक उचित है? स्वच्छ कपड़े पहनकर आभूषण पहनने से शरीर की शोभा काफी बढ़ जाती है। फटे-पुराने अथवा गन्दे कपड़ों पर आभूषण शोभा नहीं देते। बिना कपड़े आभूषण पहनने वालों को मूर्ख अथवा पागल कहते हैं। उपचार के नाम पर आत्मा और मन को विकारी बनाने वाले स्वयं निर्णय करें कि उनकी प्राथमिकता कितनी सही है ? चिकित्सा हेतु जनसाधारण की मानसिकता उपर्युक्त सभी कारणों से आज जनसाधारण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय आध् निक चिकित्सा के नाम से प्रचलित अंग्रेजी एलोपैथिक चिकित्सा को ही चमत्कारिक, प्रभावशाली और वैज्ञानिक मानता है। अन्य प्रभावशाली वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की वैज्ञानिकता पर अधिकांश व्यक्ति सन्देहास्पद दृष्टिकोण रखते हैं। जब तक कोई तथ्य आज के तथाकथित भौतिक विज्ञान द्वारा मान्य अथवा प्रमाणित नहीं हो जाता तब तक प्रायः जनसाधारण ऐसी पद्धतियों के बारे में जानने, समझने, सुनने, स्वीकारने और अपनाने में संकोच करता है। भले ही वे पद्धतियाँ अनुभूत सत्य पर 'ही आधारित क्यों न हों? परिणामस्वरूप अधिकांश रोगी जो उपचार भले ही वैकल्पिक चिकित्सा से -करवाते हों, परन्तु निदान तो आधुनिक चिकित्सकों के परामर्श एवं निर्देशानुसार करवाना आवश्यक समझते हैं। रोग में राहत मिलने के बाद तथा रोग के लक्षणों 39
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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