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दुर्व्यसनों का सेवन करते हैं। अपनी कामेच्छा से खुला खेल अमूल्य वीर्य शक्ति का नाश करते हैं। उपचार द्वारा अपने आपको स्वस्थ रखने की कामना रखने वाले ऐसे • मानव को स्वयं के प्रति भी सजग एवं सतर्क कैसे माना जाए? ये सभी प्रवृत्तियाँ तो रोग पैदा करने और उन्हें बढ़ाने वाली हैं अतः ये रोग की कारण हैं । आत्मिक ऊर्जा की उपेक्षा अनुचित
स्वास्थ्य के प्रति हमारा अज्ञान अथवा अधूरा ज्ञान रोगों का मूल कारण है। रोग की चार अवस्थाएँ हैं। शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आत्मिक । जिस अवस्था का रोग हो, जब तक उसके अनुरूप उपचार नहीं किया जाएगा तब तक • रोग से मुक्ति सम्भव नहीं । आज प्रायः मानसिक और आत्मिक रोगों को तो हम रोग मानते ही नहीं, क्योंकि मन और आत्मा की शक्ति का हमें न तो सम्पूर्ण ज्ञान ही है और न हम उसको जानने एवं समझने का अपेक्षित प्रयास ही करते हैं। इसके विपरीत आत्मबल और मनोबल की क्षमताओं से अपरिचित होने के कारण उसका अवमूल्यन कर दुरूपयोग करते संकोच नहीं करते। शरीर से मन और मन से भावना की शक्ति बहुत ज्यादा है और भावना से आत्मा की शक्ति अनन्त गुणा ज्यादा होती हैं। मन की शक्ति का उस समय आभास होता है, परन्तु सामने मृत्यु का प्रसंग या भय जैसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर दौड़ने लग जाते हैं। शारीरिक वेदना से तड़पने वाले मृत्यु की शैया पर अन्तिम श्वास गिनने वालों के सामने, जब लम्बे समय पश्चात् उनका कोई स्नेही परिजन मिलता है, तो क्षण मात्र के लिए सारे दुःख-दर्द कैसे भूल जाते हैं? खुशी के प्रसंगों पर रोगों को क्यों भूल जाते हैं? आत्म साधक सभी भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागने वाले आत्म बली, आध्यात्म योगी, सन्त, मुनिजन इतने तनावमुक्त प्रसन्नचित्त, शान्त, निर्भय, सुखी, सन्तोषी कैसे रहते हैं ? . उचित प्राथमिकताओं का चयन आवश्यक
हमारे चिन्तन का केन्द्रबिन्दु है- भावना का परिष्कार । आज की सबसे बड़ी समस्या है भावनाओं का असंतुलन या आवेग । इसी कारण सारे मनोविकार पैदा होते हैं। मन भी तन के सृजन में सहयोगी है। इन्द्रियों और मस्तिष्क के कार्यों के संचालन में उसकी अहम भूमिका होती है। सारे विचारों, चिन्तन, मनन, सोच, इच्छाओं, कल्पनाओं, कामनाओं, स्मृतियों की प्रवृत्तियों के संचालन में मन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः मनोविकारों से बचना स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है । मन स्वछन्द और अनियन्त्रित होता है। परिणाम स्वरूप जो मन चाहता है, जो मन को अच्छा अथवा अनुकूल लगता है, प्रायः हम अपनी जीवन चर्या में ऐसी बातों को प्राथमिकता देते हैं, भले ही वे हमारे शरीर के लिए अनुपयोगी अथवा हानिकारक ही क्यों न हो। हम स्वाद के वशीभूत हो ऐसी चीजें खाते संकोच नहीं करते जो • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। आँखों से ऐसे दृश्य देखते है जो विकार पैदा
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