________________
रोग, असजगता की चेतावनी
रोग प्रकृति द्वारा हमारी गलतियों को दर्शाता है। कारण दूर किए बिना लक्षणों को दबाने से राहत भले ही मिल जाए, पूर्ण उपचार कदापि नहीं हो सकता । अतः वास्तव में रोग तो एक उपहार है, क्योंकि इसका उद्देश्य परोपकारी व रक्षाकारी है। शरीर में अवांछित तत्त्वों का जमाव व उसके निष्कासन में निष्क्रियता ही रोगों का मूल कारण है।
आधुनिक चिकित्सक प्रायः रोग के मूल कारणों का पता न लगाकर रोग के लक्षणों का उपचार कर मात्र तुरन्त राहत दिलाने का प्रयास करते हैं। दवाओं द्वारा लक्षणों को दबा देते हैं। जिससे एक तरफ तो रोग के कारण बने रहते हैं, दूसरी तरफ दवाएँ प्रायः शरीर की रोग प्रतिकारात्मक क्षमताओं को क्षीण कर देती है,. परिणामस्वरूप भविष्य में नित्य नवीन रोगों के पनपने की सम्भावना बनी रहती है। उनका प्रयास वृक्ष को सुरक्षित रखने के लिए, जड़ को सींचने के बजाय पत्तों को पानी पिलाने के समान अदूरदर्शिता पूर्ण होता है।
रोग का कारण
रोगों के मुख्यतया दो कारण होते हैं।
| बाह्यय (Objective) अर्थात् शारीरिक धर्म अथवा स्वास्थ्य के सिद्धान्तों के विरूद्ध
आचरण करना ।
2) आन्तरिक (Subjective) अर्थात् स्वयं की अनिष्टकारी मनोवृत्तियों का अनुचित प्रयोग तथा अहितकर चिन्ता, भय, तनाव, दुःख आदि ।
प्रायः अधिकांश प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों में रोग से सम्बन्धित मानसिक कारणों को दूर करने की दवा अथवा इंजेक्शन अभी तक नहीं बन पाया है और न उपचार करते समय ऐसे कारणों को दूर कर मानसिक विकारों से मुक्त होने को प्राथमिकता ही दी जाती है। प्रत्येक रोग का उपचार हो सकता है, परन्तु सभी रोगों का प्रायः एक-सा उपचार नहीं होता। अंग्रेजी में एक कहावत प्रसिद्ध है, “All Diseases can be cured but not all patients, because they are having very much impatience"
अज्ञान, सभी दुःखों का मूल है.
इस दुनिया में इतने कष्ट नहीं, जितने आदमी भोगता है। वह भोगता है तो उसका कारण हैं - उसका अज्ञान । ज्ञान हैं तो बहुत से समाधान हैं। स्वास्थ्य के लिए हमारे शरीर में समाधान है, प्रकृति में समाधान है, वातावरण में समाधान है। भोजन, पानी और हवा के सम्यक् उपयोग और विसर्जन में समाधान है। समाध
न भरे पड़े हैं, किन्तु उस व्यक्ति के लिए कोई समाधान नहीं है जिसमें अज्ञान भरा पड़ा है। स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का सही ज्ञान न होना व उनका उल्लंघन करना
31