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17-18. Determination of Dashas (Periods)
पाठ- 17-18. दशा साधन विधि
भारतीय ज्योतिष में घटनाओं के घटने के समय की बताने के लिए अर्थात् घटना किस समय घटेगी जानने के लिए दशा पद्धति प्रचलित है सबसे प्रचलित और प्रभावी दशा विंशोत्तरी दशा है।
सभी ग्रहों की महादशाओं का जोड़ 120 वर्ष होता है। हमारे महर्षियों ने (प्राकृति आचार-विचार के अनुसार ) जीवन आयु 120 वर्ष मानी है।
महा दशा की गणना करने के लिए जन्म कालीन चन्द्रमा की स्थिति के आधार माना जाता है । चन्द्र जन्म समय जिस राशि में रहता है वह जातक की जातकीय राशि होती है चन्द्र जिस नक्षत्र में रहता है वह जातक का नक्षत्र होता है। नक्षत्र का जो स्वामी ग्रह होता है उसी की दशा जन्म समय मानी जाती है।
सूर्यादि नवग्रहों की महादशा अवधि इस प्रकार है:
सूर्य- 6 वर्ष, चन्द्र- 10 वर्ष, मंगल- 7 वर्ष, राहु 18 वर्ष, गुरु- 16 वर्ष, शनि - 19 वर्ष, बुध- 17 वर्ष, केतु - 7 वर्ष, शुक्र- 20 वर्ष अवधि मानी गई है! महादशाओं का क्रम भी इसी नक्षत्र क्रम से ही रहता है अर्थात् सूर्य के बाद, चन्द्र के बाद मंगल फिर राहु, गुरू, शनि, बुध केतु और शुक्र अन्तर दशा इसी महादशा अवधि के अनुपात में उसी क्रम में ही रहती है जिस क्रम में महादशा चलती है ।
जन्म समय महादशा की शेष अवधि निकालने की गणना इस प्रकार करेंगे।
जिस नक्षत्र में जातक का जन्म होता है उस नक्षत्र के भोगांश पर दशा की शेष अवधि निश्चित की जाती है एक नक्षत्र का मान 13° 20' अर्थात 800 कला होता है।
उपरोक्त उदाहरण में चक्र स्पष्ट 3रा 9°00' है नक्षत्र तालिका के अनुसार चन्द्र पुष्य नक्षत्र में हुआ पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है इस लिए जन्म समय जातक की शनि की दशा होगी। पुष्य नक्षत्र 3रा 3° 20 से प्रारम्भ होकर उरा
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